November 14, 2024

कल तारण गुरू नानक आया 

 

निरंकार स्वरूप युग प्रवर्तक सिख धर्म के संस्थापक महान उपदेशक ,सेवा तथा श्रम को सर्वोपरि बताने वाले सच्चे समाजवाद समानता सद्भावना और भाईचारे के हक़ में आवाज़ बुलंद करने वाले जगत गुरू श्री गुरु नानक देव जी के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मार्गदर्शन करने वाला है अंधविश्वासों आडंबरों और पाखंडों से बचाने वाला है श्री गुरु नानक देव जी ने स्त्रियों को समाज में सम्मान दिलवाया ।श्री गुरु नानक देव जी एक प्रभु को मानने वाले थे । उन्होंने जात पात का विरोध कर व स्त्रियों का सम्मान करने वाले अनेक कार्य कर पूरे विश्व का कल्याण किया।
श्री गुरु नानक देव जी सिखों के पहले गुरू थे उनका प्रकाश 1469ई० में राय भोय की तलवंडी में हुआ था ,जो की ननकाना साहब के नाम से प्रसिद्ध हैं इनके पिताजी का नाम मेहता कालू और जो पटवारी थे व माता का नाम तृप्ता जी था, उनकी बहन का नाम बेबे नानकी था।
मेहता कालू जी ने पंडित हरदयाल जी को जन्म पत्री बनाने के लिए बुलाया तब पंडितजी ने बताया कि यह कोई साधारण बालक नहीं और उन्हें श्रद्धा से नमस्कार किया ।जब 5 वर्ष के हुए तो गोपाल पण्डित के पास में पढ़ाने के लिए ले गए गोपाल पण्डित उनको देखकर चकित रह गए जो उन्होंने पट्टी में लिखा था अदभुत था ।फिर मेहता कालू जी अरबी फ़ारसी का ज्ञान दिलवाने मौलवी कुतब दीन के पास लेकर गए और उसके पश्चात् पण्डित ब्रिजनाथ शास्त्री के पास ,सभी इनकी योग्यता को देखकर विस्मित गए थे।श्री गुरु नानक देव जी ने मूल चंद की बेटी बीबी सुलखनी से शादी की, जबकि वह अभी भी सुल्तानपुर में रह रहे थे। उनके दो बेटे थे – बाबा लखमी दास और श्रीचंद। लेकिन उनका मन गृहस्थ जीवन में नहीं लगा। एक दिन वे नदी में नहाने गए और तीन दिन आलोप रहे। जब वे बाहर आए तो उन्हें ज्ञान हो गया था। लोगों के कल्याण के लिए उन्हें भगवान से संदेश मिला था जिसके कारण आप सभी सांसारिक कष्टों को छोड़कर लोग कल्याण के लिए निकल पड़े। इस कालखंड में आपको बाला और मरदाना मिले जो आपके साथ ही रहते थे।
जब उनका जनेऊ संस्कार हो रहा था तो उन्होंने पंडित हरि दयाल को कहा के मुझे ऐसा जनेऊ नहीं चाहिए जो कि समय के साथ टूट जाए या जल जाए ।
“दया कपाह संतोखु सूतु जतु गंढी सतु वटु ॥एहु जनेऊ जीअ का हई त पाडे घत “॥
श्री गुरु नानक देव जी ने अर्थहीन मान्यताओं का विरोध किया ,संयमित जीवन जीने की प्रेरणा दी ।समाज सुधार के लिए एक नए धर्म की स्थापना की जिसमें सृष्टि के जीवों का एक परमात्मा में अटूट विश्वास ,कर्म करते हुए सेवा साधना और ग्रहस्थ में रह कर ईश्वर से मेल की बात कही ।श्री गुरु नानक देव जी के कई प्रेरणादायक कथाएँ प्रसिद्ध है कैसे काज़ी को मक्का चारों ओर दिखाना ,हरिद्वार में सूर्य को जल चढ़ाने वालों का भ्रम तोड़ना अपनी लंबी यात्राओं में कई करामातों सिद्धि योगियों को अपने कल्याणकारी विचारों के द्वारा चकित कर देना है
“ एक पिता एकस के हम बालक” का सिद्धांत उन्होंने ही सामने लाया ,मानव जाति को चेताया कि नारी जाति उसी अकाल पुरख की सर्जना है जिसने पुरुष जाति का सृजन किया है अर्थ है वह निंदनीय नहीं है
मेहता कालू जी ने गुरुनानक देव जी को व्यवसाय की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया उन्होंने गुरुजी को 20 रूपये देकर व्यापार करने हेतु भेजा ,रास्ते में जाते हुए गुरुजी को एक साधु मंडली मिली गुरुजी ने बस उन्हीं रुपये की रसद लाकर उन्हें भोजन करा दिया है जिससे पिताजी के आक्रोश का सामना करना पड़ा मगर वे संतुष्ट थे उन्होंने जो सौदा किया था ,वही सच्चा सौदा था । सुल्तानपुर लोधी में भाई जयराम ने जो रिश्ते में उनके जीजा जी थे गुरुजी को दौलत ख़ाँ लोदी के मोदी खाने में नौकरी दिलवा दी ,हिसाब किताब रखने के लिए काम करना शुरू कर दिया एक दिन गुरुदेव मोदी खाने में अनाज तौलते तो बोलते समय तेरा की संख्या में आकर अटक गए और ध्यान मग्न हो गए और तेरा तेरा ही कहते रहे जिसकी शिकायत कुछ लोगों ने दौलत खान से कि गुरुजी मोदी ख़ाना लुटा रहे हैं ।
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन काल में धर्म प्रचार के लिए और अंधविश्वास आडंबरों का कर्मकांडों का खंडन करने के लिए चार उदासियां की ।गुरु जी ने जो सिद्धांत आज से लगभग 550 वर्ष पूर्व समाज के लोगों को दिया वह आज भी वैज्ञानिक कसौटी पर खरे उतरते हैं निश्चित रूप से गुरू नानक देव जी एक प्रबुद्ध तथा प्रवीण पुरुष थे इसीलिए तो भाई गुरदास जी ने उनको अकाल रुप कहा है श्री गुरु नानक देव जी इतनी प्रभावशाली शख़्सियत के मालिक थे कि जब वे ज्ञानियों से चर्चा करते थे तो कोई उनका अंत नहीं पा सकता था ।वे ज्ञान के सागर थे एशिया महाद्वीप में उन्होंने ऐसे धर्म की नींव रखी जो आने वाले समय में महान प्राप्ति की ओर अग्रसर था ।ऊंच नीच के विरुद्ध संघर्ष करते हुए मलिक भागों का प्रीतिभोज अस्वीकार धर्म की कीरत करने वाले भाई लालू जी का रूखा सूखा भोजन खाकर कीरत करने के लिए प्रेरणा दी।
“हकु पराइआ नानका उसु सूअर उसु गाइ”॥

गुरुजी ने अपने मूल सिद्धांत कीरत करो के अंतर्गत श्रमिकों पर हो रहे शोषण के विरुद्ध पूंजीपतियों को चुनौती दी उन्होंने बताया सच्चे परिश्रम से ही हदय पवित्र हो जाता है इसी में परमेश्वर दिखाई देता है

“नीचा अंदर नीच जाति नीची हू अति नीचु ॥नानकु तिन कै सँग साथि वडिआ सिउ किआ रीस “॥
गुरुजी ने सिधु योगियों से विचार गोष्ठियों के दौरान उन्हें गृहस्थ जीवन के महत्व का बताया है क्योंकि गृहस्थ आश्रम की प्रकृति का वास्तविक नियम है यदि समस्त मनुष्य ग्रहस्थ जीवन त्यागने लगे तो सृष्टि का स्वरूप क़ायम रहना संभव नहीं । ऐसे गुरु आज से लगभग साढ़े पाँच सौ वर्ष पूर्व घोषणाओं की आग में जलते हुए संसार को शांत करने के लिए प्रकट हुए
“सतगुर नानक परगटिआ मिटी धुँध जग चानण होआ” ॥
श्री गुरु नानक देव जी ने मानव की आध्यात्मिकता को उजागर करने के लिए मानव को सचेत किया है मानव अपनी इस चेतना के कारण संसार के जीवों से श्रेष्ठ जीव है
“माणस जनम दुर्लभ गुरमुख पाइआ “॥

श्राद्ध सूतक को मानना तथा शराब आदि नशों के सेवन जैसी कुरीतियों का विरोध करते थे । श्री गुरु नानक देव जी के अनुसार लोगों को वहमों व भ्रमों आदि विकारों से दूर रहना चाहिए ।

“मन का सूतक लोभ है जिह्वा सूतक कूड॥अखी सूतक वेखणा पर तिर्अ पर धन रूप”॥

श्री गुरु नानक देव जी ने जपुजी साहिब की पावन बानी में बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है कि अकाल पुरख के एक वचन से पूरी सृष्टि अस्तित्व में आई उसी के अनुसार में सारी रचना का विस्तार हुआ है
“कीता पसाउ एको कवाउ ॥
तिस ते होए लख दरिआउ “॥

गुरु नानक अपनी शिक्षाओं के कारण हिंदुओं और मुसलमानों के बीच बहुत प्रसिद्ध हो गए। उनके लक्ष्य दोनों समूहों के लिए उत्कृष्ट थे। वे दोनों गुरु नानक को अपने में से एक मानते थे, और गुरु नानक के भावुक शिष्य, सिख, हिंदुओं और मुसलमानों के साथ प्रतिस्पर्धा करते थे। लोककथाओं के अनुसार, जैसे-जैसे गुरु नानक के अंतिम दिन करीब आते गए, तीनों के बीच इस बात को लेकर मतभेद पैदा हो गया कि मृत्यु संस्कार कौन करेगा। जहाँ हिंदू और सिख परंपरा के अनुसार अपने गुरु के पार्थिव अवशेषों को जलाना चाहते थे, वहीं मुसलमान अपनी मान्यताओं के अनुसार अंतिम संस्कार करना चाहते थे।जब विवाद किसी सौहार्दपूर्ण निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा, तो उन्होंने गुरु नानक से सलाह लेने का फैसला किया। गुरु नानक ने उनसे अनुरोध किया कि वे फूल छोड़ दें और उन्हें उनके पार्थिव शरीर के पास रख दें। उन्होंने अनुरोध किया कि हिंदू और सिख फूल दाईं ओर रखें जबकि मुसलमान बाईं ओर। उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति के फूल एक रात तक ताजे रहेंगे, उसे अंतिम संस्कार करने का सम्मान दिया जाएगा। लेकिन सुबह जब लोगों ने देखा कि चादर के नीचे सिर्फ़ फूल हैं तो ये फूल तीनों ने बाँट लिया । मुसलमानों ने दफ़्न कर दिये, हिंदू और सिख धर्म मानने वालों ने जला दिए ।
“बलिओ चिराग़ अंध्यार महि ,सभ कलि उधरी इक नाम धरम॥प्रगटु सगल हरि भवन महि ,जनु नानकु गुरू पारबह्म”
गुरुनानक जी के विचारों से समाज में परिवर्तन हुआ। नानक जी ने करतारपुर (पाकिस्तान) नामक स्‍थान पर एक नगर को बसाया और एक धर्मशाला भी बनवाई। नानक जी की मृत्यु 22 सितंबर 1539 ईस्वी को हुआ। इन्‍होंने अपनी मृत्यु से पहले अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया।

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