November 24, 2024

आदिवासी ब्लॉक मुख्यालय नगर


डोंडी के मुख्य मार्ग पर पोस्ट ऑफिस के सामने निर्मित शिव मंदिर व कुंआ का निर्माण की हकीकत जान कर आप भी आश्चर्य करेंगे की शिव भगवान के प्रति अटूट श्रद्धा के चलते
70 वर्ष पूर्व ननिहा बाई शुक्लाइन के द्वारा गांव गांव से भीख मांग चावल सहित दान से प्राप्त राशि को इकट्ठा
कर सिर्फ गांव के हितों के लिए शिव मंदिर और कुआ स्वंम के खर्च और श्रमदान कर बिना किसी के मदद लिए निर्माण करवाया और अपने जिंदा रहते मंदिर का उद्घाटन करवाया ,और उक्त मंदिर और कुआ का उपयोग आज भी डोंडी के नगर वासी सहित आस पास के ग्रामीण अपने हितों के लिए किया जा रहा है जानकारों ने बताया की
डोंडी में ननिहा बाई शुक्लाइन का भतीजी का ससुराल तिवारी परिवार है जो डोंडी में निवासरत हैं के अंतिम समय मे तिवारी परिवार द्वारा इनकी सेवा किया गया आज भी तिवारी परिवार के आशुतोष तीवारी द्वारा प्रतिदिन मंदिर में पूजा अर्चना और देख रेख की जाती है,,,,
डोंडी के वरिष्ठ जसराज गुणधर से जानकारी लेने पर बताया की ननिहा बाई शुक्लाइन
को वे जानते है उनकी सोच शिवभक्ति के प्रति बहुत अधिक थी ,,उस वक्त
नगर में पानी की समस्या को देखते हुए 70 वर्ष पूर्व कुआ का निर्माण करवाया था जिसका उपयोग पूर्व से ही नगरवासियो द्वारा कई धार्मिक अनुष्ठानों, रीतिरिवाज के कार्य मे इस्तेमाल किया जाता रहा है ,नगर के लिए इतनी अच्छी सोच रखने वाली ननिहा बाई शुक्लाइन बहुत धार्मिक व अच्छी महिला थी जिन्होंने इस तरह का पुनीत कार्य समाज के लिए किया।
नगर के वरिष्ठ कृष्ण मुरारी दीक्षित ने जानकारी देते
ननिहा बाई शुक्लाइन
के बारे में बताते हैं की उनकी नजर में नकारात्मक आभा था जिसके चलते छोटे बच्चो को जल्दी नजर लग जाया करती थी ,इस बात से वो खुद भी अवगत थी जिस कारण जब कभी भी वह भीख मांगने किसी के यन्हा जाती थी तो पहले ही आवाज देकर बच्चों को खुद से छुपा कर रखने को कहती थी ,जिससे खुद की नजर से बच्चों की सुरक्षा हो सके ।।
मंदिर के समीप रहने वाले 50वर्षीय पारस सिन्हा ने बताया की मेरे जन्म से पहले ही यह मंदिर और कुंआ का निर्माण हो चुका था मेरा परिवार व तिवारी जी का परिवार इस का देख रेख साफ सफाई पूजा करते आ रहे है शिव भगवान की पूजा नगर की महिला पुरुष द्वारा प्रतिदिन किया जाता है इस मंदिर व कुंआ में साफ सफाई के अलावा मरम्मत की आवश्यकता है ।इस पर ध्यान देना चाहिए।

ननिहा बाई शुक्लाइन
मिशाल है कि अगर कुछ ठान लिया जाए तो कुछ भी मुमकिन नही है,,लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है की एक भिखारन द्वारा द्वारा बनाये गए इस कुआ और मंदिर को ना तो नगर पंचायत सहेज पा रहा है और ना ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा कोई ध्यान दिया जा रहा है जिसके चलते दोनों की स्तिथि दिन ब दिन जर्जर होती जा रही है
अब जरूरी है कि जिस सोच से एक महिला द्वारा जिसका कोई भी वंश डौंडी में नही है जिन्होंने निस्वार्थ भावना से जनकल्याण हेतु उक्त पूण्य कार्य जिससे सभी समाज को लाभ होगा आज मंदिर और कुआ की वर्तमान स्तिथि को देखते यह लगता है कि 65 वर्ष पहले की सोच और आज की सोच में फर्क ऐसा है कि 65 वर्ष पहले एक असहाय महिला ने भीख मांग मांग कर मंदिर और कुए का निर्माण करवा दिया तो वही आज कोई भी उनकी मरम्मत के लिए भी आगे नही आ रहा है।