May 20, 2024

सेक्स सिर्फ़ वासना नहीं बल्कि प्यार करने की अभिव्यक्ति की आजादी भी है, जानें केरल हाईकोर्ट ने क्यों कही ये बात

आज के समय में युवा पोर्न के प्रति बेहद ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। लोग अक्सर पोर्न वीडियो देखते हैं और कई बार जाता है कि, पोर्न देखने वाले को हवालात की हवा भी खानी पड़ती है। ऐसा ही एक मामला केरल से सामने आया हैं। यहां एक युवक सड़क किनारे खड़े होकर अपने मोबाइल में पोर्न वीडियो देख रहा था। इसी दौरान पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसका मोबाइल भी जब्त कर लिया।

अब इस मामले में केरल हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए एक बड़ा फैसला सुनाया है। केरल हाईकोर्ट ने कहा निजी तौर पर पॉर्न वीडियो देखना अपराध नही,”सेक्स सिर्फ़ वासना नहीं है, बल्कि प्यार करने की अभिव्यक्ति की आजादी भी है ।

न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हीकृष्णन की पीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी गोपनीयता में अश्लील फोटो देखना आईपीसी की धारा 292 के तहत अपराध नहीं है। इसी तरह, किसी व्यक्ति द्वारा अपनी गोपनीयता में मोबाइल फोन से अश्लील वीडियो देखना भी आईपीसी की धारा 292 के तहत अपराध नहीं है।

इस मामले में, जब वास्तविक शिकायतकर्ता और शिकायतकर्ता के सहयोगी गश्त ड्यूटी पर थे, तो आरोपी को सड़क के किनारे खड़े होकर अपने मोबाइल फोन में अश्लील वीडियो देखते हुए देखा गया और इसलिए उसे गिरफ्तार कर लिया गया और उसका मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया।

पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के अनुसार भी ऐसा कोई मामला नहीं है कि आरोपी मोबाइल फोन का उपयोग करके अश्लील वीडियो देख रहा था जो युवाओं को आकर्षित करेगा। ऐसा कोई आरोप नहीं है कि याचिकाकर्ता ने सार्वजनिक रूप से वीडियो प्रदर्शित किया। यहां तक कि पुलिस अधिकारी के सीआरपीसी की धारा 161 के बयान से भी यही पता चलता है कि याचिकाकर्ता अपने मोबाइल फोन पर नजरें झुकाकर अश्लील वीडियो देख रहा था।

कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ ही एक शख्स पर चले रहे आपराधिक मुकदमे को ख़त्म कर दिया और आरोपी को राहत दे दी। पूरा मामला केरल हाईकोर्ट से जुड़ा है।हाई कोर्ट ने पोर्न मूवी देखने को लेकर एक बेहद अहम टिप्पणी की ।दरअसल पुलिस ने पिछले दिनों एक शख्स को सड़क किनारे पोर्न देखते हुए हिरासत में लिया था।

इसी मामले पर केरल हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है। जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा कि अकेले में पॉर्न देखना किसी तरह के अपराध के श्रेणी में नहीं आता। खासकर तब जब वह अकेले ही पॉर्न देख रहा हो। वह ना ही अश्लीलता फैला रहा हो और न ही उसे किसी और को सेंड कर रहा हो।पीठ ने कहा कि कानून की अदालत यह घोषित नहीं कर सकती कि यह केवल इस कारण से अपराध है कि यह उसकी निजी पसंद है और इसमें हस्तक्षेप करना उसकी निजता में घुसपैठ है।

लेकिन भगवान ने कामुकता को विवाह के भीतर एक पुरुष और एक महिला के लिए कुछ के रूप में डिजाइन किया। यह सिर्फ हवस का मामला नहीं है बल्कि प्यार का भी मामला है और बच्चे पैदा करने का भी लेकिन बालिग हो चुके पुरुष और महिला का सहमति से सेक्स करना अपराध नहीं है, हमारे देश में किसी पुरुष और महिला के बीच सहमति से किया गया सेक्स अपराध नहीं है, अगर यह उनकी निजता के दायरे में हो।

कानून की अदालत को सहमति से यौन संबंध बनाने या गोपनीयता में पॉर्न वीडियो देखने को मान्यता देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये समाज की इच्छा और विधायिका के निर्णय के क्षेत्र में हैं। न्यायालय का कर्तव्य केवल यह पता लगाना है कि क्या यह अपराध है या नही। कोर्ट इसके अलावा कम उम्र के बच्चों के हाथों में मोबाइल पहुंचने के नुकसान पर भी चर्चा की।

अदालत ने कहा, ‘इस मामले से अलग होने से पहले, मैं हमारे देश के नाबालिग बच्चों के माता-पिता को कुछ याद दिलाना चाहता हूं। पोर्नोग्राफी देखना अपराध न हो, लेकिन अगर छोटे बच्चे पोर्न वीडियो देखने लगेंगे तो इसका बहुत बड़ा असर होगा।’ ‘बच्चों को उनके खाली समय में क्रिकेट या फुटबॉल या अन्य खेल खेलने दें।

यह भविष्य में देश की आशा की किरण बनने जा रही स्वस्थ युवा पीढ़ी के लिए जरूरी है। स्विगी और जोमैटो के जरिए रेस्त्रां से खाना खरीदने के बजाए बच्चों को उनकी मां के हाथों का स्वादिष्ट भोजन का मजा लेने दें। बच्चों को मैदानों में खेलने दें और घर पहुंचने पर मां के हाथों के खाने की खुशबू का मजा लेने दें।