दाऊगिरी ले डूबी कॉंग्रेस को…जानें हार के बड़े कारण….
वैसे तो भाजपा ने पहले ही ये कह दिया था ‘बदलबो-बदलबो ये दारी बदल के रहिबो’। लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस ने भी 75 पार का नारा दिया था। साथ ही इस बात का भी विश्वास था ‘भूपेश है तो भरोसा है’। लेकिन चुनाव के परिणाम को देखने के बाद ये लगने लगा है कि दाऊजी को दाऊगिरी ही कांग्रेस पार्टी को भारी पड़ गई।
छत्तीसगढ़ में 15 साल का सूखा काटकर भाजपा सत्ता में काबिज हुई थी। लेकिन सत्ता में वापसी के साथ कांग्रेस नेताओं ने अपनी परंपरा यानि खिंचतान का रिवाज निभा लिया था। स्पष्ट बहुमत होने के बाद भी सीएम पद के लिए प्रदेश के तीन बड़े नेताओं के बीच जमकर खिंचतान देखने को मिला था। भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव और तम्रध्वज साहू के बीच सीएम पद के लिए पहले मैं…पहले मैं वाली नौबत आ गई थी। एक समय तो ये खबर आ गई थी
ढाई साल बितते एक बार फिर भूपेश बघेल और सिंहदेव के बीच तनाव जैसी स्थिति पैदा हो गई। सिंहदेव ने अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की, लेकिन अंतत: भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने रहे। भूपेश बघेल का इस दौरान कई ऐसा चेहरा सामने आया जो प्रदेश की जनता की उम्मीद से परे था।
इतना ही नहीं इन पांच सालों के दौरान भूपेश बघेल की बयानों से उनकी दाऊगिरी या अकड़ साफ दिखने लगी थी। या ये कहें कि सत्ता की गर्मी भूपेश बघेल में पांच साल में ही देखने को मिल रही थी। जबकि प्रदेश की जनता ने पिछले 15 साल में शांत और सोम्य चेहरे वाले रमन सिंह को मुख्यमंत्री के तौर पर चुना था। तो चलिए 10 बिंदुओं में समझते हैें कि क्या है कांग्रेस की हार के 10 बड़े कारण?
प्रदेश की कमान संभालने के साथ ही भूपेश बघेल ने माटी पुत्र के तौर पर अपनी छवि तो बनाई, परंतु विपक्ष पर निशाना साधने के दौरान कई बाद इतनी अकड़ में बयानबाजी करते थे कि भूल जाते थे कि वो सीएम हैं न कि विपक्ष के नेता। सत्ता में आने के बाद भी भूपेश बघेल का पीसीसी चीफ वाला अंदाज छुट नहीं पाया। जबकि 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह हमेशा से नपे तुले शब्दों में बयान देते थे और कम शब्दों में ही अपनी बात रखते थे।
वोटों की गिनती शुरू होने से पहले ही कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने एक पुरानी खबर को शेयर किया जिसमें भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग का उल्लेख है। श्री सिंघवी ने लिखा ‘सोचा याद दिला दूं’।