क्या ‘अटल परीक्षा’ में पास होंगे नरेंद्र मोदी… जानिए क्या होता है विश्वास प्रस्ताव?
देश में एक दशक के बाद फिर गठबंधन सरकार की वापसी हुई है. लोकसभा चुनाव 2014 में 282 सीटों और 2019 में 303 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को पूर्ण बहुमत मिला था. हालांकि, पार्टी ने अपने अलायंस एनडीए के साथ दोनों ही बार सरकारें बनाई. हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. बीजेपी 240 सीटों के साथ सबसे बड़ा दल बनकर उभरा है. बहुमत संख्या 272 में पिछड़ी बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है, जिसनें तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की भूमिका अहम है.
मौजूदा पॉलिटिकल सिचुएशन 1996 के उस दौर की याद दिला रही है, जब देश में गठबंधन सरकार बनी और प्रधानमंत्री बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी बने, लेकिन वो विश्वास प्रस्ताव पास नहीं कर पाए थे और 13 दिन में ही सरकार गिर गई थी. अब नरेंद्र मोदी के सामने भी अटल बिहारी वाजपेयी की तरह ही विश्वास प्रस्ताव को पास करने की चुनौती होगी. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ‘अटल परीक्षा’ में नरेंद्र मोदी पास होंगे. साथ ही यह भी जानिए कि विश्वास प्रस्ताव क्या होता है.
जब विश्वास प्रस्ताव पास नहीं कर पाए अटल
1996 के आम चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. तब बीजेपी को 161, कांग्रेस को 140, जनता दल को 46, सीपीएम को 32, सीपीआई को 12, समाजवादी पार्टी को 17 और डीएमके को 16 सीटें मिली थीं. ऐसे में सबसे बड़ा दल बनकर उभरी बीजेपी को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सरकार बनाने का न्योता दिया. राष्ट्रपति के इस फैसले जनता दल और लेफ्ट के नेता नाराज हो गए. उन्होंने राष्ट्रपति भवन जाकर अपना विरोध जताया.
विपक्ष के विरोध की वजह थी कि बीजेपी के पास बहुमत न होना. बीजेपी के लिए 272 सांसदों को जुटा पाना लगभग नामुमिकन था. फिर भी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार बनाने को तैयार हो गए. आखिरकार वे पहली बार देश के प्रधानमंत्री बन गए. बीजेपी सरकार पर बहुमत साबित करने का दबाव था. बीजेपी को मालूम था कि वो विश्वास मत जीत नहीं पाएंगे. बावजूद इसके अटल बिहारी वाजपेयी ने सदन में विश्वास प्रस्ताव पेश किया, लेकिन वो बहुमत नहीं जुटा सके. उनकी सरकार 13 दिनों में गिर गई. देश की राजनीति में ये पहला मौका था, जब सरकार महज 13 दिन में ही गिर गई थी.
1996 की तुलना में अब बीजेपी काफी मजबूत है, क्योंकि उसके पास 240 सीटें हैं. वह बहुमत से महज 32 सीट ही दूर है. पार्टी के अलायंस NDA के पास 293 हैं. NDA ने नरेंद्र मोदी को ससंदीय दल का नेता चुन लिया है. वहीं अभी राष्ट्रपति सबसे बड़ा दल होने के नाते बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता देंगे. अभी तक तो एनडीए के सरकार बनाने की राह एकदम साफ दिख रही है और पीएम मोदी का तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना तय दिख रहा है. हालांकि फिर भी विपक्ष के दबाव के आगे सदन में नरेंद्र मोदी के सामने अटल बिहारी वाजपेयी वाली चुनौती होगी. उनको भी सदन में विश्वास प्रस्ताव पेश करना पड़ सकता है. हालांकि उनको इस प्रस्ताव को पास करने में कई दिक्कत नहीं होगी. अभी ऐसे सियासी समीकरण दिख रहे हैं.