दुनिया मना रही वर्ल्ड रिफ्यूजी डे, जानिए- कितना खास है ये दिन, भारत के लिए इसके क्या मायने?
आज यानी 20 जून को दुनिया वर्ल्ड रिफ्यूजी डे मना रही है. ‘शरणार्थियों के साथ एकजुटता’ इस वर्ष की थीम है. यह उन लोगों के साहस और उनकी उपलब्धियों का जश्न मानने का दिन है, जिन्हें संघर्ष या उत्पीड़न से बचने के लिए अपने देश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इस दिन शरणार्थियों के सामने की चुनौतियों पर विचार किया जाता है. इस मौके पर आइए जानते हैं कि क्यों खास है आज का दिन (वर्ल्ड रिफ्यूजी डे) और भारत के लिए इसके क्या मायने हैं. बता दें कि भारत में भी शरणार्थियों के आने और उनके ठहरने का एक लंबा इतिहास रहा है.
क्यों खास है वर्ल्ड रिफ्यूजी डे?
वर्ल्ड रिफ्यूजी डे कई मायनों में खास है. हर वर्ष 20 जून को मनाया जाना वाला यह इंटरनेशनल पर्व है. इसे दुनियाभर में खासकर शरणार्थियों और उनके हकों की आवाज बुलंद करने वाली संस्थाओं द्वारा सेलिब्रेट किया जाता है. यह दिन दुनियाभर में शरणार्थियों की स्थिति के बारे में जागरुकता बढ़ाने को समर्पित है. सबसे पहले 4 दिसंबर 2000 को यूनाइनेट नेशंस (UN) ने फैसला लिया कि वर्ष 2000 से, 20 जून को वर्ल्ड रिफ्यूजी डे के रूप में मनाया जाएगा. तब से हर साल 20 जून को दुनिया इस दिन को सेलिब्रेट करती है.
UN ने इस साल भी शरणार्थियों के लिए आवाज बुलंद की है. यूएन सेक्रेटर जनरल एंटोनियो गुटेरस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्स एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, ‘#WorldRefugeeDay पर, आइए शरणार्थियों की सहायता करने और उनका स्वागत करने, उनके मानवाधिकारों को बनाए रखने, जिसमें शरण लेने का अधिकार भी शामिल है. संघर्षों का हल निकालना दुनिया की सामूहिक जिम्मेदारी है ताकि अपने समुदायों से मजबूर लोग घर लौट सकें.’
यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर मिनट 20 लोग युद्ध, उत्पीड़न, या आतंक से बचने के लिए अपना सब कुछ पीछे छोड़ देते हैं. उनको दूसरे देशों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है. ऐसे लोगों को नए देश में रहने, खाने और रोजगार से जुड़ी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. बदहाली के हालत में भी जीवन को बचाए रखने की उनके सामने चुनौती होती. ऐसे लोगों (शरणार्थियों) की दुर्दशा के प्रति सहानुभूति, समझ विकसित करने और ऐसे प्रयास, जिनसें ये लोग अपने देश वापस लौट सकें के मकसद से वर्ल्ड रिफ्यूजी डे मनाया जाता है.