सोमवती अमावस्या पर जरूर करें यह विशेष आरती, पितृ दोष के साथ दूर होगी हर बाधा
अमावस्या तिथि प्रतिमाह आती है। यह तिथि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बहुत ही खास मानी जाती है। वैदिक पंचांग के अनुसार इस साल भाद्रपद अमावस्या 2 सितंबर 2024 दिन सोमवार यानी आज मनाई जा रही है। इस दिन दान-पुण्य और धार्मिक कार्य करने से भोलेनाथ का आशीर्वाद साधक पर बना रहता है और घर में सुख-शांति का वास रहता है।
अमावस्या तिथि सनातन धर्म में बेहद महत्वपूर्ण मानी गई है।
अमावस्या हर महीने आती है।
अमावस्या पर पूजा और व्रत करने से पापों का नाश होता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सोमवती अमावस्या का हिंदुओं के बीच बड़ा धार्मिक महत्व है। इस दिन लोग विभिन्न प्रकार की धार्मिक गतिविधियों करते हैं। सोमवार को पड़ने की वजह से इसे सोमवती अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन पितरों को समर्पित है। इस बार सोमवती अमावस्या 2 सितंबर, 2024 यानी आज के दिन मनाई जा रही है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन (Somvati Amavasya 2024) पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
इसके साथ ही सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। वहीं, इस दिन पितरों की आरती और भोलेनाथ की आरती अवश्य करनी चाहिए, जिससे जीवन सुखमय बीत सके।
।।पितृ देव की आरती।।
जय जय पितर जी महाराज,
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मैं शरण पड़ा तुम्हारी,
शरण पड़ा हूं तुम्हारी देवा,
रख लेना लाज हमारी,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
आप ही रक्षक आप ही दाता,
आप ही खेवनहारे,
मैं मूरख हूं कछु नहिं जानू,
आप ही हो रखवारे,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
आप खड़े हैं हरदम हर घड़ी,
करने मेरी रखवारी,
हम सब जन हैं शरण आपकी,
है ये अरज गुजारी,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
देश और परदेश सब जगह,
आप ही करो सहाई,
काम पड़े पर नाम आपके,
लगे बहुत सुखदाई,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
भक्त सभी हैं शरण आपकी,
अपने सहित परिवार,
रक्षा करो आप ही सबकी,
रहूं मैं बारम्बार,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
जय जय पितर जी महाराज,
मैं शरण पड़ा हू तुम्हारी,
शरण पड़ा हूं तुम्हारी देवा,
रखियो लाज हमारी,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
।।शिव जी की आरती।।
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥