December 18, 2024

छात्रावासीय छात्रों की मौतो का सिलसिला जारी थमने का नाम नही

 

अनवर हुसैन सुकमा

सुकमा जिला मे लगातार आश्रम, पोटाकेबिन के बच्चो का मौत हो रहा है, छिन्दगढ ब्लाक मुख्यालय से दो किलोमीटर दूर स्थित पोटाकेबिन कन्या आश्रम बालाटिकरा मे एक दूसरी कक्षा की छात्रा अचानक तबियत खराब होता है, उस बच्ची का एक घंटे के अन्दर मौत भी होता है,

यह घटना सुबह पता चलता है कि एक छात्रा की मौत सामूहिक स्वास्थ्य केंद्र छिन्दगढ में ईलाज के दौरान हुआ,

इसकी जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से सभी को मिलता है इसके बाद सभी जनप्रतिनिधि ,छात्र संगठन, आदिवासी समाज के लोग बच्चो के साथ लगातार ऐसे घटना क्यों हो रहा है इसको बारीकी से जानने के लिए पोटाकेबिन आश्रम बालाटिकरा पहुंच कर बच्चो व स्टाफ से बात करने की कोशिश करते है उनको पोटाकेबिन के अन्दर जाने से रोका जाता है ऐसा क्यों बड़ा सवाल पैदा करता है,

इस घटना का खबर मिलते ही प्रशासनिक अधिकरी सुबह पोटाकेबिन पहुंचकर वहा के बच्चो व प्रबंधन से क्या क्या बात करते है,और बाहर निकलने के बाद संस्था के अन्दर किसी को भी जाने से रोका जाता है, ये मामला क्या है?

आदिवासी बच्चो की मौत लगातार होने की घटना को लेकर कारण जानने के लिए कोया समाज के जिलाध्यक्ष विष्णु कवासी के नेतृत्व मे युवा प्रभाग प्रतिनिधिमंडल पोटाकेबिन पहुंचकर घटनाक्रम को जानने के लिए बच्चो व स्टाफ को मिलने गये दल को पोटाकेबिन के अन्दर जाने से रोका गया,और पुलिस पोर्स लगया गया।

इतना ही नही जिले के राजनीतिक प्रतिनिधि पूर्व विधायक मनीष कुंजाम व जिला पंचायत सदस्य रामा सोड़ी ने छिन्दगढ मे अपनी संगठन की सभा करने के बाद छात्रा की घटना के बारे मे जानने के लिए पुलिस की उपस्थिति में अपने प्रतिनिधियो के साथ पोटाकेबिन बालाटिकरा पहुंचकर अधीक्षिका व कुछ बच्चो से जानकारी लेने पहुंचकर भुलाते है, पूछताछ शुरू हुआ ही नही कि साथ मे मौजूद पुलिस अधिकारी कहने लगे कि यह पर आप लोगो का अनुमति नही है तत्काल बाहर निकलो निकलो कहने लगे हमने पुछा क्या हुआ बच्चो के साथ बात तो करने दो पांच मिनट, फिर भी बोलने लगे है कि एसडीएम व कलेक्टर का निर्देश है, यह पर कोई नही रहेगा अनुमति नही है कहां जाता है, आखिर घटना को जानने के लिए जा रहे सामाजिक संगठन, जनप्रनिधियो को मिलने से रोकना क्या मामला है?

सभी को पता है घटना पोटाकेबिन की छात्रा का मौत हुआ है, यह घटना कहां चूक हुआ इसका जानकारी लेना हर संवैधानिक दायरे मे रहने वाला व्यक्ति का अधिकार है, और ये ही होना है चाहिए । ताकि कारण क्या है बीमारी क्या है जान सके।

आखिर क्या कारण है जिला प्रशासन को जरूरत पड़ा कि बच्चो व वहां के स्टाफ से मिलने जानकारी लेने से रोकना, संस्था में प्रवेश नही देना

ये घटना का सवाल इन जिम्मेदार अधिकारियो पर उठता है,

क्या प्रशासन, जिम्मेदार अधिकारी अपनी गलतियों को छुपाने या बाहर आने से रोकने का हथकंडे अपनाने का प्रयास किया जा रहा?

ये सब किसके सरंक्षण पर हो रहा है, सीधा सीधा राजनीतिक दबाव का प्रभाव मे आकर तरह तरह का हथकण्डे अपनाने की कोशिश हो रहा है,

अगर किसी नेता या सरकार के दबाव मे अधिकारी है तो उन अधिकारी को आदिवासी बच्चो के प्रति काम करने का छोड़कर नेताओ का चापलूस करना चाहिए,

मनीष कुंजाम कोई आम नागरिक नही है पूर्व विधायक है, एक राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व करते, इन पर भी प्रतिष्ठा नही रखा जा रहा है, इनके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है सत्ता के नेताओ के दबाव मे, आदिवासी बच्चे आश्रम छात्रावास पोटाकेबिन मे पढ़ते है, उन बच्चो के साथ हो रहे घटना को जानने के लिए जा रहे आदिवासी समाज के प्रतिनिधियो को जाने से रोकते है , क्या आदिवासी समाज का भी मान मर्यादा को नही समझते है? पत्रकारो को भी जाने से मना कर दिया गया।

इससे अपने आप जिम्मेदार अधिकारी साबित कर दिये है कि प्रशासन व विभागीय अधिकारी, पोटाकेबिन अधिक्षक की लापरवाही है, इससे बचने के लिए तमाम अधिकारी लगे हुए है, हर तरह का हथकण्डे अपना रहे है,

नियम केवल घटना होने से ही नही शैक्षणिक संस्थानो में छात्रों को ऐसे घटनाओ से बचाने का नियम है, मेडिकल से लेकर खान-पान, सुरक्षा, पर भी नियम है, आजकल बच्चो को सोयाबीन बड़ी, आलू चना ही खिलाया जाता है, मीनू चार्ट के आधार पर नही खिलाया जाता है, स्वास्थ्य परीक्षण नियमित नही होता है, ये भी तो नियम के विरूद्ध इसका क्यों पालन नही हो रहा है, इसका जिम्मेदार कौन?

जिले में ये ही दो तीन महीने के अंदर आश्रमो के चार आदिवासी छात्रो की मृत्यु हुई,

1) कन्या आश्रम कोर्रा की पहली पढ़ने वाली छात्रा की मौत,

2) बालक आश्रम किस्टाराम मे दूसरी कक्षा का आदिवासी छात्र का मौत,

3) बालक आश्रम कोयावेकूर का पहली कक्षा का आदिवासी छात्र की मौत,

4) पोटाकेबिन आश्रम बालाटिकरा की दूसरी कक्षा की छात्रा की मौत,

5) एकलव्य विधालय सुकमा मे अध्ययनरत छात्रा की गर्भवती का मामला,

6) पोटाकेबिन आश्रम मुरतोंडा में छात्रा की गर्भवती होने का मामला,

7) आवासीय एकलव्य विधालय छिन्दगढ (सुकमा)
मे चार्ट सर्किट से छात्रो की गायल होने घटना,

8) इड़जेपाल आश्रम मे कीड़े वाला नास्ता बच्चो को परोसने का मामला,

9) पोटाकेबिन आश्रम मराईगुड़ा से 6 वी कक्षा का छात्र लापता होने की घटना,

10) बालिका छात्रावास कोन्टा में कीड़े पड़ा चावल बनाने की मामला,

ऐसे मामले आदिवासी आश्रम, छात्रावास, पोटाकेबिनो में हो रहे तमाम घटनाओ का जिम्मेदार कौन है?

क्या इन मामलों को पूरी तरह दबाने की कोशिश प्रशासन कर रहा है?

आदिवासी छात्रो के साथ हो रहे अन्याय को उजागर करने से बचना चाहा रहा है, शासन प्रशासन,

अब तक छात्रावास, आश्रम, पोटाकेबिनों मूलभूत समस्याओ पुरा नही हो रहा है, कई स्कूल भवन नही है, तो शौचालय खराब पड़ा है, छात्रावासो मे सीट बृध्दि किया जा रहा है वर्षो से पोस्ट मैट्रिक छात्रावासो का सीट मात्र 50 सीटर है, सैकड़ो शिक्षको की रिक्त पद पड़ा है, स्कूलो मे एक एक शिक्षक है, छात्र/शिक्षको का अनुपात के आधार पर शिक्षक नही है, छात्रो को मिलने वाला राशि का अधिकारी नेताओ के बीच बंदरबांट कर कमीशन को अड्डा बना लिया गया है, मनमानी तरीके से मनचाहे कभी भी किसी को अधीक्षक बनाया जा रहा है तो किसी को ट्रांसफर कराया जा रहा है इसमे ही पुरे साल व्यस्त रहते है तो आदिवासी बच्चो को कब पढ़ायेंगे,

अधिकांश स्कूलो मे एकल शिक्षक पदस्थ है उन्हे भी तमाम तरीके के काम सौपा जा रहा है इससे बच्चे का पढ़ाई नही हो पा रहा है इसका जिम्मेदार कोन है ?

इन तमाम मुद्दो को लेकर जिले के छ्त्रो की पालक, आदिवासी समाज, छात्र संगठनों के साथ बड़ी घेराव करने की जरूरत है।

महेश कुंजाम
(अधिवक्ता)
प्रदेश अध्यक्ष (AISF)

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