उज्जैन में शर्म-बेबसी के वे 2.5 घंटे: देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई महाकाल!
हम कितने बुजदिल हो गए हैं। हम कितने बेशर्म हैं। हमें तनिक भी शर्म नही आती हमारे दिलों में इंसानियत मर गई है। उज्जैन की वो बच्ची हैवानो की दरिंदगी के बाद मदद के लिए दर-दर भटक रही थी। पर इस पवित्र नगरी के लोगों के दिलो में इस नन्हीं मासूम बच्ची के लिए कोई दया तक नहीं थी ।
दिन के उजाले में खून से लथपथ बच्ची की चीखों पर जब तुम्हारे दिल से आवाज नहीं निकली तो धिक्कार है हम सभी के इंसान होने पर वो बच्ची महज 12 साल की है। वहशियों ने दरिदों ने उसकी जो हालत की है, उसे सुनकर खून खौल रहा है। अरे ओ उज्जैन वालो कहां मर गई थी तुम्हारी इंसानियत! उस अर्धनग्न बच्ची को कपड़ो तो पहना देते। ये तस्वीर हमारे समाज पर ऐसा धब्बा है, ऐसा नासूर है जो कभी नहीं मिट पाएगा। उस बच्ची की चीखें, उसके रोने की आवाजें कलियुग के सीने को चीर रही हैं।
अरे इससे बड़ा अपराध और क्या हो सकता। है कई बार लावारिस लाश पर हम अपने कपड़े डाल देते हैं। ये तो जिंदा बच्ची थी। एक कपड़ा तो उसके बदन पर डाल देते। cctv फुटेज में दर-दर भटकती की उस बच्ची को देख किसी की भी आंखें भर आएंगी। लेकिन उज्जैन के लोगों का दिल नहीं पसीजा। अंत तक किसी ने भी उस बच्ची की मदद नहीं की। मदद मांगते-मांगते थककर वह बच्ची बेहोश होकर बंदानगर में सड़क पर गिर गई।