एक परिवार एक टिकट’ 2024 के चुनाव में बड़ा परिवर्तन करने जा रही भाजपा
तीन राज्यों में जब भारतीय जनता पार्टी ने नए चेहरों को मुख्यमंत्री बनाया तो पीढ़ी परिवर्तन की काफी बात हुई थी. वास्तव में भाजपा इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है. वह नया नेतृत्व तैयार करना चाहती है. राज्यों के बाद अब लोकसभा चुनाव में भी इस नीति का असर देखने को मिल सकता है. अंदरखाने से ये बात छनकर सामने आ रही है कि अगले आम चुनाव में भाजपा दो बार चुनाव लड़ चुके नेताओं को टिकट देने से मना कर सकती है. हां, विकल्पहीनता या जिताऊ फैक्टर ने मजबूर किया तो इस नीति में कुछ अपवाद भी हो सकते हैं. कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा जा रहा है कि 2024 के चुनाव में भाजपा नेतृत्व ‘एक परिवार एक टिकट’ के फॉर्मूले को स्थायी नीति के तौर पर अपना सकता है.
हाल के चुनावों में भाजपा ने ऐसा ही प्रयोग किया था. कुछ बड़े नेताओं के घरवाले या करीबी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव का टिकट मांग रहे थे. बताते हैं कि इसी कारण दिग्गज नेता को ही राज्य में चुनाव लड़ने भेज दिया गया. केंद्र से जब दिग्गज नेता विधायकी लड़ने गए तो पार्टी ने जनता में यह संदेश देने की भी कोशिश की कि वह वंशवाद को पनपने नहीं देगी. वह खुद दूसरी पार्टियों पर वंशवाद को बढ़ावा देने के कारण हमला करती रही है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चाहता है कि जाति आधारित राजनीति को खत्म करने के लिए हर वर्ग से नेतृत्व निकलकर सामने आए. संघ नहीं चाहता कि दिल्ली हो या राज्यों की राजधानी, नेतृत्व या नेताओं का संकट न हो. हर वर्ग से नेताओं की कतार तैयार रहे. ऐसा तभी संभव हो सकता है जब पार्टी नेतृत्व पीढ़ी परिवर्तन के लिए सख्त रुख अपनाए.
2014 से ही उसी लाइन पर भाजपा
वैसे, 2014 के बाद से ही भाजपा में उम्र को लेकर एक ‘लक्ष्मण रेखा’ खींच दी गई थी. पिछले 10 वर्षों का इतिहास पलटकर देखें तो पुराने चेहरों की जगह नए कैंडिडेट को आगे किया गया है, भले ही वह कितने बड़े नेता क्यों न हों. राजस्थान में तो पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने बड़ा संदेश दिया है. पीएम मोदी पहले भी पार्टी नेताओं से कह चुके हैं कि यह भ्रम तोड़ना जरूरी है कि राजनीति का मतलब सिर्फ चुनाव का टिकट लेकर विधायक और सांसद बनना है.
कई महीने से जाति जनगणना को विपक्ष मुद्दा बना रहा है. भाजपा को लगता है कि अगर पार्टी में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होगा तो ऐसे मुद्दों को निष्प्रभावी किया जा सकेगा. केंद्र और राज्य ही नहीं संगठन में भी ज्यादा से ज्यादा वर्गों को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. भाजपा को लग रहा है कि उसके पास तमाम वर्गों के नेताओं की उपस्थिति होने से ही विपक्ष जाति जनगणना पर हावी नहीं हो सका.
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, तैयारी यह भी हो रही है कि अगले लोकसभा चुनाव के बाद एक अलग तरह की राजनीति शुरू हो. भाजपा सामाजिक कार्यों की भी जिम्मेदारी लेती दिख सकती है. जातिगत विषमता को दूर करने के लिए बड़ा अभियान शुरू हो सकता है. साथ ही सरकार के मंत्रियों और दिग्गजों को संगठन और सामाजिक कार्यों के लिए भेजा जा सकता है.