November 24, 2024

क्यों पद संभालने से पहले ली जाती है शपथ, जानें इससे जुड़े नियम

भारतीय राजनीति के लिए रविवार 9 जून 2024 का दिन काफी अहम है. क्योंकि राजनीति के इतिहास में एक अहम अध्याय जुड़ने जा रहा है. लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) बतौर प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं. ऐसा पहली बार होगा जब कोई गैर कांग्रेसी (Congress) लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेगा. बल्कि कांग्रेस में भी पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद किसी ने लगातार तीसरी बार पीएम पद की शपथ नहीं ली है. शाम 7.15 बजे नरेंद्र मोदी के साथ एनडीए (NDA) गठबंधन के कई सांसद भी केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लेंगे. इस ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने के लिए देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से बड़े नेता और विशिष्ट अतिथि दिल्ली आए हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पद संभालने से पहले देश में शपथ लेने की प्रथा क्यों होती है. किस बात की शपथ ली जाती है. क्यों इसको लेकर क्या है नियम. अगर नहीं हम अपने इस लेख में आपको पूरी जानकारी देंगे.

क्या है शपथ ग्रहण का महत्व
सरकार से जुड़े किसी पद के लिए शपथ ग्रहण समारोह केवल एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह एक गहन संवैधानिक प्रक्रिया है. इस समारोह का महत्व कई दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है इनमें प्रमुख रूप से…

1. संवैधानिक प्रक्रिया: भारत के संविधान के तहत, प्रधानमंत्री, मंत्री, राष्ट्रपति, राज्य के मुख्यमंत्री और यहां तक कि पंचायत स्तर के पंच और सरपंच को भी पदभार ग्रहण करने से पहले शपथ लेनी होती है. दरअसल यह प्रक्रिया इस बात को सुनिश्चित करती है कि ये पदाधिकारी संविधान के प्रति निष्ठा और समर्पण दिखाएं.

2. लोकतंत्र की पुष्टि: शपथ ग्रहण समारोह (Oath Taking Ceremony) लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को दर्शाता है. यह इस बात की पुष्टि करता है कि सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण और विधिसम्मत तरीके से हो रहा है.

3. सार्वजनिक विश्वास: ओथ टेकिंग सेरेमनी यानी शपथ ग्रहण समारोह जनता के बीच विश्वास की भावना को मजबूत करने का भी काम करता है.  यह इस बात को दर्शाता है कि निर्वाचित नेता और पदाधिकारी सार्वजनिक सेवा के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी और निष्ठा से करेंगे.

क्या है शपथ ग्रहण की प्रक्रिया
बता दें कि भारत में शपथ ग्रहण समारोह की प्रक्रिया विस्तृत और विधिसम्मत होती है.  लोकसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा के मुताबिक, सांसद, विधायक, प्रधानमंत्री और मंत्रियों को पदभार ग्रहण करने से पहले भारत के संविधान के प्रति श्रद्धा रखने की शपथ लेनी होती है.

खास बात यह है कि अगर इनमें से किसी भी प्रतिनिधि ने शपथ ग्रहण नहीं की है तो वह निर्वाचित प्रतिनिधि सरकारी कामकाज में हिस्सा नहीं ले सकते हैं.  उन्हें सदन में सीट आवंटित नहीं होती है और न ही वे सदन में बोलने के अधिकार रखते हैं.

क्या है शपथ का महत्व
1. पद की गरिमा बनाए रखना: 
शपथ लेते समय यह सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचित प्रतिनिधि अपने पद की गरिमा को बनाए रखेंगे.  हालांकि कई बार देखने में आता है कि इस नियम का उल्लंघन हो जाता है.

2. ईमानदारी और निष्पक्षता: 
शपथ में यह भी शामिल होता है कि प्रतिनिधि ईमानदारी और निष्पक्षता से अपना काम करेंगे.

3. संप्रभुता और अखंडता का संरक्षण:
निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर से ली जा रही शपथ में यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखेंगे. इस बात प्रण भी लिया जाता है.

क्या होता है शपथ का स्वरूप
प्रधानमंत्री, मंत्री, राष्ट्रपति, पंच-सरपंच और सरकारी सेवा में शामिल होने वाले अधिकारी पद की गरिमा, ईमानदारी, निष्पक्षता और देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने की शपथ लेते हैं. शपथ लेने में भाषा की कोई बाध्यता नहीं होती है. निर्वाचित सदस्य अपनी सहजता के मुताबिक यह शपथ हिंदी, अंग्रेजी या किसी भी भारतीय भाषा में ले सकते हैं. जैसे भारत के 13वें राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने अपने पद की शपथ संस्कृत में ली थी. वहीं कुछ मंत्री अपनी स्थानीय भाषा में कुछ अंग्रेजी में भी शपथ लेते हैं.

कितनी तरह की होती हैं शपथ 

मंत्रीपद की शपथ दो हिस्सों में ली जाती है

1. पद की शपथ: इसमें मंत्री अपने पद की गरिमा बनाए रखने, ईमानदारी और निष्पक्षता से काम करने और देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने की शपथ लेते हैं.

2. गोपनीयता की शपथ: केंद्र और राज्य में मंत्री पद पर नियुक्त होने वाले सांसद और विधायक गोपनीयता की शपथ भी लेते हैं, जिसमें वे अपने कार्यकाल के दौरान गोपनीय सूचनाओं को साझा नहीं करने का वचन देते हैं.

शपथ ग्रहण नियमों के उल्लंघन पर सजा का प्रावधान

शपथ ग्रहण संविधान के तहत एक आवश्यक प्रक्रिया है.  कोई व्यक्ति शपथ लेकर भी अपने पद का दुरुपयोग करता है या शपथ के उल्लंघन में लिप्त पाया जाता है, तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जा सकती है. यह संविधान का उल्लंघन माना जाता है और इसके लिए विभिन्न कानूनों के तहत सजा का प्रावधान है.

इतिहास में शपथ ग्रहण का महत्व
भारत के इतिहास में शपथ ग्रहण का विशेष महत्व रहा है. यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पुष्टि करता है और यह दर्शाता है कि सत्ता का हस्तांतरण विधिसम्मत और शांतिपूर्ण तरीके से हो रहा है. इसके साथ ही स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने शपथ ग्रहण की और इसके बाद यह प्रक्रिया हर बार एक नई सरकार के गठन के समय दोहराई जाती है. दरअसल शपथ ग्रहण समारोह न केवल एक संवैधानिक आवश्यकता है, बल्कि यह एक प्रतीकात्मक घटना भी है जो लोकतंत्र, ईमानदारी और निष्पक्षता की पुष्टि करती है.