अन्तर्राष्ट्रीय कृषि मड़ई एग्री कार्नीवाल 2022
रायपुर, 17 अक्टूबर, 2022
आयोजित प्रदर्शनी में छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों से आए हुए किसानों ने उनके द्वारा संरक्षित विभिन्न फसलों की परंपरागत किस्मों को प्रदर्शित किया।
पंजीयन कार्यशाला एवं प्रदर्शनी’’ आयोजित
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. जे.सी. राणा ने कहा कि उनकी संस्था सम्पूर्ण भारतवर्ष में कृषि फसलों एवं औषधीय फसलों में जैव विविधता संरक्षण एवं संवर्धन का कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देश में जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा मिला है तथा किसानों द्वारा संरक्षित परंपरागत किस्मों का अधिकार प्राप्त हुआ है। पौध किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के संयुक्त पंजीयक डॉ. दीपल राय चौधरी ने बताया कि पी.पी.वी.एफ.आर. के तहत चार मुख्य बिन्दुओं के माध्यम से जी.आई. टेग की प्रक्रिया अपनाई जाती है। उन्होंने पौधा किस्मों की सुरक्षा व किसानों और पादप प्रजनकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रभावी प्रणाली उपलब्ध कराना, नई पौधा किस्मों के विकास के लिए पादप आनुवांशिक संसाधनों को उपलब्ध कराने, उनके संरक्षण व सुधार में किसानों के योगदानों को सम्मान व मान्यता प्रदान करना, अनुसंधान एवं विकास तथा नई किस्मों के विकास के लिए निवेश को बढ़ाने हेतु पादप प्रजनकों के अधिकारों की सुरक्षा, उच्च गुणवत्तापूर्ण बीजों/रोपण सामग्री के उत्पादन व उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए बीज उद्योग की वृद्धि को सुविधाजनक बनाने की जानकारी दी। राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, नई दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राकेश भारद्वाज ने इस अवसर पर कहा कि आज नवीन विकसित फसल प्रजातियों की उपज अधिक मिल रही है लेकिन उनमें पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है, जबकि परंपरागत किस्मों में पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। उन्होंने कहा कि भोजन से मिलने वाली पोषकता में कमी के कारण आज तरह-तरह की व्याधियां हो रही हैं। उन्होंने कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि नवीन प्रजातियों के विकास में परंपरागत किस्मों के पोषक गुणों को शामिल किया जाए।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के जैव विविधता परियोजना प्रमुख डॉ. दीपक शर्मा ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय में वर्ष 2015-16 में किसानों के किस्मों का रजिस्ट्रेशन प्रारंभ किया गया, अभी तक कुल 1218 प्रजातियों को जी.आई. टैग मिल चुका है। उन्होंने बताया कि धान में बस्तर और सरगुजा अंचल में जैव विविधता बहुत अधिक पाई गई है। डॉ. शर्मा ने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र कृषि विश्वविद्यालय एवं ग्राम पंचायतों से मिलकर जैव विविधता पंजीयन का कार्य किया जाता है। उन्होंने बताया कि सम्पूर्ण भारतवर्ष में जैव विविधता में छत्तीसगढ़ राज्य दूसरे स्थान पर है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ के 1785 कृषकांे द्वारा कुल 68 फसलों को चिन्हित कर जी.आई.टेग हेतु पंजीयन करवाया गया था जिसमें से अभी तक धान की 339 किस्मों, सरसों की 3 एवं टमाटर की 1 किस्म कुल 343 किस्मों को जी.आई. टैग मिल चुका है। इस अवसर पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के संचालक अनुसंधान डॉ. विवेक त्रिपाठी, निदेशक विस्तार डॉ. अजय वर्मा, अधिष्ठाता के.एल. नंदेहा, डॉ. विनय पाण्डेय, डॉ. एम.पी. ठाकुर, विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक, वैज्ञानिकगण, विद्यार्थी एवं बड़ी संख्या में परंपरागत किस्मों को संरक्षण करने वाले प्रगतिशील किसान उपस्थित थे।