महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव : कांग्रेस बनी सहयोगियों के लिए बोझ
नई दिल्ली, । महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में विभिन्न पार्टियों के बीच गठबंधन और प्रतिस्पर्धा ने राजनीतिक समीकरणों को नया रूप दिया है। इन चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला जबकि कांग्रेस पार्टी समेत महाविकास अघाड़ी (एमवीए) का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा। खासकर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के प्रदर्शन ने एमवीए को सबसे बड़ा झटका दिया।
महायुति में भाजपा, शिवसेना और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी शामिल हैं। इस गठबंधन ने एमवीए के मुकाबले बड़ी बढ़त हासिल की है। एमवीए में कांग्रेस, एनसीपी-एसपी (शरद पवार गुट), और शिवसेना (यूबीटी) ने अपेक्षित प्रदर्शन नहीं किया लेकिन इसमें कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे खराब साबित हुआ। महाविकास अघाड़ी के घटकों के बीच कांग्रेस का प्रदर्शन चिंता का विषय बन गया है। इस प्रदर्शन पर नजर डालें तो कांग्रेस अपने ही सहयोगियों के लिए बोझ बनती नजर आ रही है।
एक आंकड़े से इसको समझने की कोशिश करें तो शिवसेना को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 57 सीटें मिली। जबकि शिवसेना (यूबीटी) को 20 सीटें मिली और दोनों पार्टियों के बीच सीटों का अंतर 37 रहा। अगर वोट प्रतिशत की बात करें तो दोनों पार्टियों के वोटों में 2.42 प्रतिशत का अंतर रहा।
ऐसे ही राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी को इन चुनाव में 41 वोट मिले। जबकि एनसीपी-शरद पवार को 10 वोट मिले और दोनों पार्टियों के बीच जीत का अंतर 31 वोट का रहा। वोट प्रतिशत के मामले में यह फर्क 2.27 प्रतिशत रहा।
वहीं, कांग्रेस और भाजपा जैसी दो बड़ी पार्टियों के बीच मुकाबला बिल्कुल एकतरफा साबित हुआ। भाजपा जहां 132 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो कांग्रेस को केवल 16 ही सीटें मिली। दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के बीच सीटों का अंतर 116 रहा और प्रतिशत में यह फर्क 14.35 प्रतिशत रहा, जो दिखाता है कांग्रेस का प्रदर्शन महायुति में सबसे खराब साबित हुआ।
कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन ने एनसीपी और शिवसेना (यूबीटी) जैसे सहयोगी दलों पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। महाराष्ट्र में 2024 के विधानसभा चुनाव परिणाम ने एक बार फिर कांग्रेस पार्टी की स्थिति पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिसके कारण महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में सहयोगी दलों को और अधिक नुकसान झेलना पड़ा है। आगे, कांग्रेस और उसके सहयोगियों को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है और इस चुनाव के परिणाम महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े बदलाव ला सकते हैं।