परम पूज्य निर्यापक मुनि 108 श्री समता सागर महाराज जी का सत्संग रूआबांदा से श्री त्रिवेणी जैन तीर्थ सेक्टर 6 में मंगल प्रवेश पर भक्तों द्वारा मंगल अगवानी.

भिलाई परम पूज्य निर्यापक मुनि 108 श्री समता सागर महाराज जी ने अपने अमृत वचन भिलाई में कहा कि सज्जन
के माथे पर तिलक और दुर्जन के माथे पर सींग दिखाई दे रहे हों, ऐसा दिखाई नहीं देता, वीतरागता,आत्मा परमात्मा और तत्व को लेकर जिसको सच्ची श्रद्धा होती है,वह श्रद्धा सच्चा सम्यक दर्शन है” उपरोक्त उदगार निर्यापक श्रमण समतासागर महाराज ने रुहावांधा दि. जैन मंदिर में प्रातःकालीन धर्म सभा में व्यक्त किये।*
मुनि श्री ने कहा कि “श्रद्धा” में समीचीनता न हो तो वही श्रद्धा “अंधश्रद्धा” बन जाती है उन्होंने अंधश्रद्धा”के दुष्परिणामों पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि कुछ लोग धर्म के नाम पर लोगों को ठगते एवं भ्रमित करते है,तथा धोखा देते है, जब तक लोग उनको समझ पाऐं तब तक वह सारा मालपानी लेकर रफूचक्कर हो जाते है, ऐसे लोगों से मुनि श्री ने कहा है को दूसरों को धोखा नहीं देते वल्कि स्वंय को ही धोखे में रखते है।इससे न केवल “धर्म की महिमा” घटती है,वल्कि भविष्य में उन पर भी कोई विश्वास नहीं करता उन्होंने कहा कि धर्म करना अच्छी बात है, धर्म की क्रियायें करो, धार्मिक बनो, लेकिन धर्म के नाम पर अंध श्रद्धा मत करो, “जीवन में “सम्यक दर्शन” प्राप्त करना एक महान गुण है, इसे आप भी प्राप्त कर सकते है।”करत करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान रस्सी आवत जात है कठोर पड़त निशान” मुनि श्री ने कहा कि पुरुषार्थ जब एकरूपता में आती है तो सफलता तो मिलती ही मिलती है। जैसे खाने के गाल और नहाने के बाल अलग ही समझ आ जाते है उसी प्रकार एक सम्यकदृष्टि की क्रियायें अलग ही समझ आ जाती है।नीतिकार कहते है कि ऐसा नहीं है कि सज्जन के माथे पर तिलक लगा हो,और ऐसा भी नहीं है कि दुर्जन के माथे पर सींग दिखाई दे रहे हों? ऐसी पहचान प्रथमतः हो सकती है लेकिन दुर्जनता और सज्जनता तो अपने भावों से आती है।उन्होंने उदाहरण देते हुये कहा भगवान महावीर पूर्व की पर्याय में एक भील थे और शिकार करना उनका पेशा था लेकिन उसी पर्याय में उनके परिणाम बदले और वह भील से भगवान बनने के रास्ते पर आगे बड़ गया,वंही सिंह की पर्याय में हिरण का शिकार कर रहा था मुनि महाराज ने उसको देखा और सम्वोधन दिया और वही शेर भगवान बन गया जैन धर्म की विशेषता है हर आत्मा को परमात्मा बनने का अधिकार मिलता है। जैसे कपड़ा गंदा हो जाता है तो उसे साफ करना पड़ता है उसी प्रकार जब हमारा मन गंदला हो जाता है,तो उस मन को साफ करने के लिये ही “प्रतिक्रमण” का पाठ करना पड़ता है,जो अपने स्वभाव से वाहर जाकर अपनी आत्मा को गंदला करता है उसे प्रतिदिन प्रतिक्रमण का पाठ अवश्य करना पड़ता है।जैसे कार का शीशा गंदा होंने पर धर्म ध्यान का बाईपर चला दोगे तो कार के शीशे में साफ साफ दिखने लगता है। इस अवसर पर मुनि श्री पवित्र सागर महाराज ऐलक श्री निश्चयसागर महाराज ऐलक श्री निजानंद सागर महाराज क्षु. संयम सागर महाराज मंच पर विराजमान थे।
राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन एवं भिलाई त्रिवेणी जैन तीर्थ भिलाई सेक्टर 6 प्रचार प्रमुख प्रदीप जैन बाकलीवाल ने बताया मुनि श्री ने प्रातः6 बजे संघ सहित श्री मल्लिनाथ दि. जैन मंदिर रिसाली एवं पारसधाम दि. जैन मंदिर के दर्शन किये एवं शांतिधारा संपन्न की तथा आहारचर्या रुहावांधा में अजित कुमार जैन ब्र.अंकित भैया के परिवार में संपन्न हुई।
श्री त्रिवेणी जैन तीर्थ सेक्टर 6 पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर में समिति के ज्ञानचंद बाकलीवाल डॉक्टर जिनेंद्र जैन प्रशांत जैन जिनेंद्र जैन आदि भक्तों ने महिलाओं के साथ पूज्य गुरुदेव का जयकारा लगाते हुए सैकड़ो भक्तों के साथ मंगल अगवानी श्रीफल अर्पण करते हु किया
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श्री त्रिवेणी जैन तीर्थ सेक्टर 06/
भिलाई