November 15, 2024

गाय पर कमेंट के बीच इकलौता मंदिर जहां केवल गाय और बैलों की होती है पूजा

भारत करोड़ों मंदिरों से घिरा देश है, जहां आपको हर देवता देखने को मिल जाएंगे. मंदिरों में भगवान के हर रूप की बड़ी आस्था और विश्वास के साथ पूजा होती है. लेकिन अगर हम आपसे कहें कि देश में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां सिर्फ गायों और बैलों की ही पूजा की जाती हो तब आप क्या कहेंगे?

अबतक आप ऐसे मंदिर में दर्शन करने गए होंगे, जहां भगवान और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां होगीं, लेकिन अब आपको जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, वहां पर मूर्तियों के बजाए साक्षात पशुधन (गाय और बैलों) की ही पूजा होती है. इस खास मंदिर के बारे में आपको भी जानकारी होनी चाहिए.

ये खास मंदिर तमिलनाडु में है. जहां के किसानों के लिए, थाई (तमिल महीने) की दूसरी तारीख को पैदा हुए बछड़े कई गांवों के लोगों के लिए साक्षात भगवान हैं.

गांव वाले इनका उपयोग व्यावसायिक या घरेलू उद्देश्य के लिए नहीं करते हैं. वे उन्हें अपने पारिवारिक देवता के रूप में मानते हैं. ओक्कालिगा गौडर समुदाय के लोग इस मंदिर की देखभाल करते हैं और साल भर मवेशियों को चारा खिलाते हैं.

पोंगल उत्सव इस मंदिर का प्रमुख त्योहार है. गांव वाले इन विशेष पशुधन को कंबुम स्थित श्री थंबीरन मातु थोझू, गाय मंदिर में समर्पित कर देते हैं. मंदिर में कोई अन्य देवता नहीं है. मंदिर में चढ़ाए गए गाय और बैल उनके देवता हैं. लोग, चाहे वे किसी भी समुदाय, कुल और धर्म के हों, इस मंदिर में ऐसे मवेशियों को चढ़ाते हैं. कम्बम के आसपास के छह गांवों में इस नियम का सख्ती से पालन किया जाता है. यहां के पशुपालकों का दृढ़ विश्वास है कि थाई 2 को जन्मे नर या मादा बछड़े में दिव्यता होती है.

इस मंदिर में अब तक 200 से अधिक गाय और बैल हैं. यहां करीब दो दर्जन गांवों के लोग दर्शन और पूजा करने आते हैं. इस मंदिर में स्थित एक बैल जिसकी पहचान’पट्टथु कलई’ के रूप में हुई थी. उसे मुख्य देवता के रूप में माना जाता है. उन्हें कांसे की घंटियां, चांदी और सोने के आभूषणों से सजाया जाता है. उन्हें रेशमी कपड़े पहनाते हैं. उनके कूबड़ और सींगों को चांदी के आभूषणों से सजाया जाता है.