संयुक्त आन्दोलन के नाम पर हड़ताल सफल करवाने का प्रयास राजनीतिक लाभ हेतु “सेल” के कर्मचारियों के साथ धोखा;
भारतीय मजदूर संघ कर्मचारियों के पक्षधर होकर 10 साल का वेतन अवधि के साथ MGB 20% तथा संशोधित वेतनमान का Perks 35% की मांग रखी। जबकि NJCS के चार प्रतिभागी श्रम संगठनों की मांग पर नजर डालें और वेतन चर्चा में उनके तर्कों पर ध्यानाकर्षण किया जाना चाहिए, कौन कर्मचारियों के पक्ष में खड़ा रहा। इन यूनियनों के तर्क तथा चर्चा में इनकी सच्चाई पर संघर्ष किया तो निलम्बित तथा स्थानांतरण करवाने से भी नहीं चुकते , बोकारो और भिलाई के कुछ कर्मचारी इसकी खामियाजा भुगत रहे हैं। इन सभी के एकमत नहीं होने तथा बार बार भारतीय मजदूर संघ को नीचा दिखाने के लिए सभी एकबद्ध होकर कर्मचारियों का नुक़सान पहुंचाने का काम किया है।
भारतीय मजदूर संघ सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखता है पर कर्मचारियों की क्षति न हो इसके लिए भी प्रयास किया है। MOU पर हस्ताक्षर करने वाले लोग श्रमिकों को असहाय बताया और ऐतिहासिक समझौता किया, जिसमें 1-1-2017 से MOU के आधार पर वेतन भुगतान तक के बकाया राशि के भुगतान पर स्पष्टीकरण नहीं है। पर्क्स पर चर्चा करते समय सभी यूनियन के प्रतिनिधि 28% हेतु सहमति जताई गई पर NJCS के फोरम में तीन यूनियनें अपनी सहमति से विमुख हो कर 26.5% पर समझौता किया। भारतीय मजदूर संघ के साथ सीआईटीयू भी हस्ताक्षर करने से इंकार किया। बाद में सीआईटीयू पे स्केल पर मौन रुप से तीन यूनियनों के द्वारा हस्ताक्षरित MOU को स्वीकृति दिया। छः बैठकें सब कमेटी की हुई जिसमें मात्र पे स्केल पर ही निर्णय लिया गया। शेष मुद्दे जैसे रात्रि भत्ता, एच आर ए, ग्रेच्युटी सीमा, बकाया राशि, इत्यादि क्यों नहीं सुलझाया गया। वैसे ही ठीका श्रमिकों के लिए भी छः बैठकें हुई, वहां भी ठीका श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन की मांग पर सीआईटीयू के प्रतिनिधि डटे रहे जबकि सेल से अबतक कभी भी ठीका श्रमिकों न्यूनतम वेतन तय नहीं हुआ, केवल ठीका श्रमिकों को एडब्लूए ही मिला करता था। प्रबन्धन एडब्लूए के लिए 25% का ऑफर दिया, उस पर चर्चा करने से कतराते थे। अन्तिम छठा बैठक में वही एडब्लूए पर चर्चा करते हुए 200% वृद्धि की मांग रखते हुए सीमाबद्ध किया, जिसका प्रबन्धन सीधा कहा कि यह निर्णायक चर्चा का प्रयास नहीं है।परिणाम स्वरूप ठीका श्रमिकों को आज तक कुछ भी नहीं मिला। अब संयुक्त आन्दोलन में सक्रिय हैं जहां श्रमिकों को हित कम राजनीतिक मानसिकता के अन्तर्गत प्रधानमंत्री को घेरने के लिए आन्दोलन और हड़ताल कॉल किया जा रहा है जो ठीक केन्द्र सरकार के वार्षिक बजट के पूर्व की तिथि तय किया है। इस आन्दोलन में संयुक्त आन्दोलन की बात होती है पर भारतीय मजदूर संघ के केन्द्रीय नेतृत्व से परहेज़ किया गया है तथा भारतीय मजदूर संघ की पंजीकृत यूनियन को जोड़ने की बात की जाती है।
प्रबन्धन तीन बार बैठक के लिए तैयार करने का प्रयास किया। 4 नवम्बर 2023 को ठीका श्रमिकों के सम्बन्ध में चर्चा कर निर्णय लेने हेतु, यह चार यूनियनें यह कहकर सहमति नहीं दिया कि अभी बैठक करने के लिए माहौल सही नहीं है।19 या 20 दिसम्बर 2023 को NJCS की बैठक करने हेतु आमंत्रित करना चाहती थी पर यह चार यूनियनें बैठक करने से मनाही किया और कहा कि अभी समय नहीं है। अभी अभी 4 जनवरी 2024 को NJCS की बैठक सभी से वार्ता कर तय किया, जबतक सभी की सहमति नहीं बनती तब तक मीटिंग के लिए पत्र जारी नहीं होता है। जब इन यूनियनों को समझ में आया कि ऐसा करने से हड़ताल फ्लॉप होगी तो तुरन्त बैठक स्थगित करवाया गया। ऐसी सोच इन यूनियनों की मानसिकता बता रही है कि इनकी कर्मचारियों के प्रति कितनी हमदर्दी है। यदि सभी श्रमिक हित भावना से प्रेरित होकर एकबद्धता दिखाने का प्रयास करें तो निश्चयात्मक रूप से प्रबन्धन पर दबाव बनाया जा सकता है।
भारतीय मजदूर संघ को किनारे रख हड़ताल की तिथि तय किया गया और अब उस हड़ताल के समर्थन के लिए पहले स्थानीय स्तर पर भारतीय मजदूर संघ से सम्बद्ध यूनियनों को कहा गया, जब बात नहीं बनी तो केन्द्रीय नेतृत्व से आग्रह किया जा रहा है जबकि किसी भी केन्द्रीय यूनियन के नेतृत्व द्वारा यह प्रयास नहीं किया जा रहा है। प्रश्न है कि क्या संयुक्त आन्दोलन ऐसे ही तय होता है? कर्मचारियों को मोहरा बना कर राजनीति करना छोड़ दिया जाना चाहिए और केन्द्रीय नेतृत्व को साथ लेकर एजेन्डा तय किया जाना चाहिए फिर सभी के सुविधा और सहमति के आधार पर कोई भी आन्दोलनात्मक कार्यक्रम तय किया जाना चाहिए। अपना विचार व कार्यक्रम किसी पर थोपना संयुक्त आन्दोलन नहीं हो सकता है। इसलिए भारतीय मजदूर संघ से सम्बद्ध यूनियन पूर्व से तय आगामी संयुक्त आन्दोलन का हिस्सा नहीं है। धन्यवाद।
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