पत्नी के एक छोटे से आग्रह से हो गया प्रभुश्रीराम का बड़ा काम
भिलाई। पत्नी की जिद को अकसर लोग हास्य में लेते हैं पर यह यही जिद कभी-कभी ऐसा कुछ कर जाती है कि लोग दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं. नेहरू नगर चौक स्थित मां शेरावाली मंदिर के पुजारी पं. अरुण मिश्रा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. पिछले सात सालों से वे उन तीर्थों का भ्रमण कर रहे हैं जहां श्रीराम के पद पंकज पड़े हैं. घर गृहस्थी में उलझी पत्नी साथ तो नहीं जा पाती थी पर ऐसे सभी तीर्थों से एक मुट्ठी मिट्टी लाने की जिद करती थी. आज यह संग्रह 108 ऐसे स्थानों की मिट्टी के रूप में उनके पास धरोहर है जहां श्रीराम के चरण से धरती पावन हुई.
पं. अरुण मिश्रा बताते हैं कि अयोध्या में श्रीरामलली के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के साथ अब लोगों में श्रीराम चरण रज के प्रति उत्सुकता जागी है. उन्होंने 108 स्थलों से प्राप्त मिट्टी को अब थोड़ी-थोड़ी मात्रा में छोटे-छोटे कलशों में भर कर भक्तों को उपलब्ध करा रहे हैं. यह मिट्टी श्रृंगवेरपुर, प्रयागराज, कुरईगांव, चित्रकूट, सती अनुसुईया, बड़वारा, शहडोल, अमरकंटक, सिकासेर, हरचौंका, कोरिया, रामगढ़, सरगुजा, शिवरीनारायण, तुरतुरिया, बलौदाबाजार, चंदखुरी, राजिम, सिहावा, सप्तऋषि, रामाराम, सुकमा, दण्डकारण्य, भद्राचलम, कोठागुरम, राजमहेन्द्र, बारसूर, पंचवटी (नासिक), ताकिरगांव, इगतपुरी, तुंगभद्रा, पम्पासरोवर, ऋषिमुख पर्वत, हम्पी, किष्किंधा पर्वत, बेल्लारी, मदनपर्वत, भद्रागिरी, कोडिकराई, बेलालंकिनी, त्रिचुरापल्ली, नागापट्टनम, रामेश्वरम, धनुषकोटि, मन्नार, नुआरा, एलिया, अशोक वाटिका, एल्ला, वतुना, रूमकुला, सिगिरिया, रणभूमि लंका, इत्यादि स्थलों से संग्रह किया गया है. इनमें से केवल श्रीलंका में उपस्थित स्थलों की यात्रा उन्होंने स्वयं नहीं की है.
वे कहते हैं कि मिट्टी का कोई मोल नहीं होता. जिसकी जैसी आस्था, जिसकी जैसी भावना वे दक्षिणा देकर इन क्षुद्र कलशों को प्राप्त कर सकते हैं. इन्हें घर के प्रवेश द्वार, व्यवसाय के स्थल, पूजा स्थल में प्रतिष्ठित किया जा सकता है. प्रभु श्रीराम के चरण रज अधिक से अधिक परिवारों के पास पहुंचे, इसी संकल्प के साथ वे अपने गुरू की आज्ञा का पालन करते हुए प्रयास कर रहे हैं.