प्रदेश जीता अब “बस्तर फतह” की तैयारी में BJP.. कांग्रेस का वापसी का दावा.. लेकिन NOTA से निबटने की चुनौती बरकरार
जगदलपुर: देशभर में आज से लोकसभा चुनाव की औपचारिक शुरुआत हो चुकी हैं। आज से 21 राज्यों के 102 लोकसभा सीटों के लिए नामांक दाखिल किये जा सकेंगे।ये प्रक्रिया आने वाले 27 मार्च तक जारी रहेगी। ये 102 वही सीटें हैं जहां सबसे पहले चरण यानी 19 अप्रेल को मतदान होने हैं। बात करें छत्तीसगढ़ की तो यहाँ बस्तर लोकसभा के तौर एकमात्र सीट शामिल हैं जहाँ 19 अप्रेल को वोटिंग होगी, इस तरह इस सीट के लिए नॉमिनेशन की आज से शुरुआत हो चुकी हैं। प्रदेश के आला नेताओं ने भी बस्तर का रुख कर लिया हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में बस्तर समेत छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा सीटों पर विजय हासिल करने वाली भाजपा को उम्मीद हैं कि इस बार यह सीट उनके खाते में आएगी जबकि कांग्रेस पिछली बार की तरह फिर से इस बार बस्तर में बड़ी जीत का दम्भ भर रही हैं।
भाजपा ने इस सीट से महेश कश्यप को अपना उम्मीदवार घोषित किया हैं। आरएसएस की पृष्ठभूमि वाले महेश कश्यप बस्तर सांस्कृतिक मंच के बैनर तले क्षेत्र में होने वाले धर्मांतरण के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहे है। वे अपने गांव कलचा के सरपंच और बस्तर जिला सरपंच संघ के अध्यक्ष भी रहे हैं। उनकी पत्नी जगदलपुर जनपद पंचायत की सदस्य हैं। इस तरह महेश कश्यप पहली बार प्रदेश के इस सबसे प्रतिष्ठित सीट से भाजपा का प्रतिनिधित्व करने की तैयारी में हैं। दूसरी तरफ खबर लिखे जाने तक कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार तय नहीं किया हैं बावजूद इस बात की पूरी सम्भावना हैं कि पार्टी इस बार भी अपने मौजूदा सांसद और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दीपक बैज को ही मौका दे।
गौरतलब हैं कि बस्तर लोकसभा सीट के तहत विधानसभा की कुल 8 सीटें आती हैं। इनमें कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, जगदलपुर, चित्रकूट, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंटा विधानसभा सीटें शामिल हैं।पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस इलाके में शानदार वापसी की और 5 सीटों पर कब्जा जमाया, तो वहीं 3 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। आदिवासी बाहुल्य और आरक्षित बस्तर सीट हमेशा से कांग्रेस की पारम्परिक सीट मानी जाती रही हैं। लेकिन अब यहाँ के हालात और सियासी समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं। बस्तर क्षेत्र में करीब 22 लाख की आबादी रहती है। यहां का मुख्य मुद्दा इस क्षेत्र को नक्सलियों के प्रभाव से मुक्त कराना है। इसके अलावा आज भी बस्तर के कई इलाके ऐसे हैं, जहां पर लोगों को मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल पा रही हैं और इन्ही मुद्दों पर यहाँ का चुनाव केंद्रित होता हैं। इस सीट के साथ सबसे खास बात यह है कि बस्तर लोकसभा में सबसे ज्यादा तादाद महिला वोटरों की हैं। बस्तर लोकसभा के 70 प्रतिशत आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में रहते है।
बस्तर लोकसभा सीट के लिए पहली बार चुनाव 1952 में हुए थे। तब कांग्रेस की प्रत्याशी रही मुचाकी कोसा ने जीत हासिल की थी और बस्तर की पहली सांसद बनी थी। इसके बाद 1957 में कांग्रेस ने वापसी की लेकिन इसके बाद हुए तीन चुनाव 1962, 1967 और 1971 में कांग्रेस को निर्दलीय प्रत्याशियों से हार का सामना करना पड़ा और इस तरह कांग्रेस का जानदार कम होता चला गया। कांग्रेस की हार का सिलसिला जारी रहा और 1977 में भारतीय लोक दल के प्रत्याशी रिगपाल शाह केसरी शाह ने जीत हासिल की। हालाँकि यह क्रम टूटा और 1980 में कांग्रेस प्रत्याशी लक्ष्मण करमा ने कांग्रेस को जीत दिलाई। इसके बाद 1984, 1889 और 1991 में भी कांग्रेस ने जीत दर्ज की। 1996 में एक बार निर्दलीय प्रत्याशी महेंद्र करमा ने कांग्रेस को हरा दिया। इस सीट पर पहली बार 1998 में भाजपा ने खाला खोला और फिर 2014 तक इस सीट पर कब्जा जमाए रखा। हालांकि 2019 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी दीपक बैज ने बस्तर सीट पर जीत दर्ज कर ली। भाजपा के लिए बलिराम कश्यप यहाँ से सांसद रहे।