November 15, 2024

कोरोना वायरस कोविड-19 से राहत दिलाने की जिम्मेदारी — सरकार-सिस्टम, सोशल मीडिया के स्वयंभू ज्ञानी और हम

कोरोनावायरस या कोविड-19 यह शब्द आज पूरे विश्व में सबसे शक्तिशाली’ सबसे प्रभावशाली, सबसे ताकतवर, सब से ज्यादा प्रयोग में आने वाला, सबसे ज्यादा बोले जाने वाला,सबसे खतरनाक शब्द होने के साथ ही साथ यही वह शब्द है जिससे व्यक्ति घृणा करता है, नापसंद करता है, इस शब्द से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता है, स्वप्न में भी यह शब्द के साथ जीना नहीं चाहता है, इस शब्द का उच्चारण नही करना चाहता है किंतु यह संपूर्ण मानव जाति की विवशता है कि आज इसी शब्द से भयाक्रांत जीवन जीने को विवश है, क्योंकि यह सिर्फ एक शब्द नहीं है यह एक वैश्विक महामारी है जो संपूर्ण विश्व के लोगों को अपनी भयावहता, क्रूरता और दुष्प्रभाव से प्रचंड विकराल स्वरूप धारण कर मानव जीवन को काल का ग्रास बना दिया है। ना जाने कितने घरों के चिराग बुझ गए, कितने बच्चे अनाथ हो गए, कितनों के मांग उजड़ गए, कितनों ने अपने बुढ़ापे का सहारा खो दिया।
यह अपना विशालकाय दैत्याकार मुंह खोलें मानव जीवन निगलने को आतुर खड़ा हुआ है।
यह वायरस कहां से आया ? कैसे आया ?कैसे फैला ?क्यों फैला ? ऐसे बहुत से अनसुलझे प्रश्न है, शायद जिसका जवाब कभी नहीं मिलेगा । किंतु यह तो सभी को पता है कि यह सामान्य बीमारी नहीं जिससे हम आसानी से निजात पा सकेंगे । यह एक प्रकार का हमारे शरीर पर, स्वास्थ्य पर आक्रमण है । जो सांसे मनुष्य के जीवन की बागडोर होती है उसी सांस के माध्यम से यह हमारे शरीर पर आक्रमण कर हमारी सांसे तोड़ रही है । इस आक्रमण की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज दुनिया का हर इंसान भयाक्रांत है चाहे वह सक्षम हो या अक्षम, सामर्थ्य वान हो या असमर्थ , गरीब हो या अमीर, कमजोर हो या ताकतवर सभी को घायल कर रहा है । इस वैश्विक महामारी से अपनों की जान बचाने के लिए दुनिया के वैज्ञानिक , चिकित्सक और सभी देश कज शासन-प्रशासन के लोग हर स्तर पर प्रयास कर रहें हैं और इन प्रयासों में कुछ आंशिक रूप से सफलता भी प्राप्त कर रहे हैं । इस सफलता का प्रतिशत अभी इतना नहीं है कि इस सफलता पर किसी को गर्व करना चाहिए और ना ही हम चिंता मुक्त हो सकते हैं । हमें अभी बहुत धैर्य रखना होगा। संकट की इस घड़ी में जहां बीमार व्यक्ति के ऑक्सीजन का स्तर गिर रहा है वही हमें अपने मनोबल और विश्वास का स्तर लगातार बढ़ाना है क्योंकि इसी विश्वास के साथ हम अपनी और अपनों की सुरक्षा में सतत सकारात्मकता के साथ प्रयासरत रह सकेंगे । वर्तमान में आलोचना चाहे सरकार की नीतियों की हो या प्रशासन की शक्तियों की या फिर व्यवस्था (सिस्टम) की हो , आलोचना करने से बचना चाहिए क्योंकि जहां भी हम खामियां देखना चाहेंगे हमारी आंखें वही दिखाईंगी। हमें तो यह देखना है कि हम व्यक्तिगत रूप से स्व-हित और सर्व-हित क्या कर सकते है ? हमारी प्राचीन संस्कृति एवं धारणा सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय की ही रही है । इसलिए सर्व हित में हमें कोरोना से बचाव हेतु शासन और प्रशासन द्वारा लगाए गए लाकडाउन के सभी नियमों का बड़े ही कड़ाई और जिम्मेदारी से पालन करना है जिससे संक्रमण का असर कम हो और हमारे अपनों के खोने में कमी आ सके । यदि किसी कारणवश कोरोना संक्रमित हो जाए तो चिकित्सकों के दिशानिर्देशों का अक्षरशः पालन करें । वर्तमान में यही लोग हमारी जान बचाने हेतु अपनी जान जोखिम में डालकर दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं । हमारी एक भी मूर्खतापूर्ण गतिविधि से देश के लोगों की जान खतरे में आ जाएगी । इसलिए सर्वहित का प्रयास हमारा तभी सफल होगा जब हम स्व-हित के लिए प्रयास कर अपनी सुरक्षा कर सकें तभी हमारा परिवार, समाज, प्रदेश और फिर देश सुरक्षित रहेगा ।
देश और प्रदेश की सरकारें इस महामारी को रोकने के लिए लगातार प्रयासरत है । दिन- प्रतिदिन व्यवस्थाओं में वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन करती हैं । कहीं नागरिक स्वतंत्रता और सुविधाओं में प्रतिबंध लगाना पड़ रहा है तो कहीं बल का प्रयोग भी करना पड़ रहा है । इसमें कोई संदेह नहीं कि इसका आम जनजीवन पर बुरा असर भी पड़ रहा है । काम-धंधा, रोजगार के अवसर कम हुए हैं, आर्थिक संकट खड़ा हो रहा है, लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है । व्यवस्थाओं में नीतियों में कमी भी दिख रही है । सरकार को चाहिए कि आपसी सामंजस्यता बनाकर और स्थितियों का वास्तविक आकलन कर विशेषज्ञों की सलाह से आर्थिक एवं सामाजिक गिरावट को ठीक करने के लिए जन सुलभ, जन- उपयोगी योजनाओं एवं सुविधाओं की व्यवस्था करें । आलोचनाओं की परवाह ना करते हुए नित निरंतर ऐसे प्रयास करें , ऐसी व्यवस्था करें जिसका दूरगामी प्रभाव जन कल्याणकारी हो , लोगों के जान की रक्षा करने में सहायक हो ।लोगों का विश्वास शासन और प्रशासन के प्रति मजबूत हो । विरोधी राजनीतिक दल के नेता , कार्यकर्ता विशेषकर ऐसे स्वयंभू ज्ञानी जो शासन की नीतियों ,निर्देशों , व्यवस्थाओं की आलोचना फेसबुक, व्हाट्सएप और विभिन्न सोशल प्लेटफार्म पर अपने आधे-अधूरे अविकसित ज्ञान से लोगों को दिग्भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं , हमें ऐसे लोगों से और उनके कुत्सित विचारों से बचना होगा । ये अर्धज्ञानी अपनी कुत्सित मानसिकता से जिस व्यवस्था (सिस्टम) की बुराई कर रहे हैं वास्तव में यही व्यवस्था (सिस्टम) चाहे वह केंद्र सरकार की हो या राज्य सरकार की ,हमें इस वैश्विक महामारी से बचाने हमारी सांसों की डोर को मजबूत करने ,.वायरस के आक्रमण से बचाने का प्रयास कर रही है और करती रहेगी । स्वयंभू ज्ञानी अविश्वास का वातावरण निर्मित कर अपने साथ साथ हमारे और अपने परिवार की जान का भी दुश्मन बनता जा रहा है । यह हमारा नैतिक धर्म है कि हम इस सिस्टम में रहकर इस सिस्टम को सुचारू रूप से चलने दें। इसी मे सबकी भलाई है ।
“लोहा लोहे को काटता है” इसे चरितार्थ करते हुए कोरोना जांच रिपोर्ट की सकारात्मकता (पॉजिटिव) को हम अपने प्रयासों , विश्वास की दृढ़ता और विचारों की सकारात्मकता से पराजित कर सकते हैं और कर ही लेंगे ।

राम चंद्र मजूमदार
पत्रकार एवं समाज सेवक
रायपुर (छ. ग.)
94062 12777