कलेक्टर पी दयानंद की प्रेरणा ने बदल दी ममता की जिंदगी
तब गांव आंछीमार के पहाड़ी कोरवा मंगल सिंह घर पर नहीं थे। उनकी बेटी ममता कोरवा शायद स्कूल जाने के लिए झटपट तैयार हो रही थी। अचानक से ममता तक खबर आई कि उनके घर के बाहर कोरबा के कलेक्टर आए हैं। वह अपनी जूती भी नहीं पहन पाई थी और सफेद मोजे पहने हुए स्कूल ड्रेस में भागती हुई बाहर आई। उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि पहाड़ी कोरवाओं की इस छोटी सी बस्ती और तंग गली में कभी मोटर सायकल भी नहीं आता-जाता, उस गली से होकर उनके द्वार तक कलेक्टर की गाड़ी और स्वयं कलेक्टर आए हैं। ममता की खुशी का ठिकाना नहीं था। कलेक्टर ने जब उनसे पूछा…कौन से क्लास में हो…नाम क्या है ? मैं कोरबा कलेक्टर पी दयानंद हूं…तो सबसे पहले ममता ने मुस्कुराते हुए हाथ मिलाया और नाम बताते हुए कहा…तो सर आप ही कलेक्टर..है.! कलेक्टर से हाथ मिलाते ही उलझनों के मोड़ में उलझी ममता को कलेक्टर पी दयानंद से ऐसा ज्ञान और प्रोत्साहन मिला कि एक दिन उसकी जिंदगी बदल गई।
Village Aanchimar आठ साल पहले स्कूल खुलने के दिन यानी एक जुलाई को ग्राम आंछीमार की पहाड़ी कोरवा ममता तब कक्षा दसवीं पास करके कक्षा 11वीं में ही पहुंची थीं। तब वह बहुत असमंजस में थी कि 11 वीं में कौन सा विषय लिया जाए, जो विषय ली है, वह ठीक है या नहीं..? उसके समाज में कोई ऐसा परिचित भी उन्हें नहीं मिल रहा था कि वह उससे पूछ सकें…। विषय चयन सहित आगे की पढ़ाई को लेकर एक मोड़ पर उलझी ममता के लिए अचानक से कलेक्टर का घर आना उनके भविष्य के लिए एक नया रास्ता था। कलेक्टर पी दयानंद ने तब उन्हें एक शिक्षक की तरह समझाते हुए बायोलॉजी सब्जेक्ट चयन करने और इससे बनने वाले कैरियर के विषय में बताते हुए एकाग्रता के साथ मन लगाकर पढ़ाई करने तथा पहाड़ी कोरवा समाज की अन्य बेटियों के लिए भी प्रेरणास्रोत बनने की बात कही। पहाड़ी कोरवा ममता के लिए यहीं एक ऐसा मोड़ था जिससे उनकी उलझने दूर हुई और ममता की जिंदगी बदल गई। कलेक्टर की बातों को गांठ बांधकर पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाया और बायोलॉजी से पहले 11वीं और 12वीं पास करने के बाद बीएससी, डीसीए, एमए की पढ़ाई पूरी की। किसी शिक्षक के रूप में एक कलेक्टर से मिले ज्ञान और अपनी पढ़ाई की बदौलत ममता ने आखिरकार कामयाबी हासिल की। अब वह शिक्षिका बन गई है और प्रभारी प्रधानपाठक का दायित्व सम्हालने के साथ ही ग्रामीण विद्यार्थियों को ज्ञान की किताब पढ़ा रही है।
कोरबा विकासखण्ड अंतर्गत ग्राम आंछीमार की पहाड़ी कोरवा ममता शिक्षिका के रूप में प्राथमिक शाला चीतापाली में पढ़ाती है। उसने बताया कि वह जिस समाज से आती है, उसमें बहुत ही कम लोग 10वीं, बारहवीं तक की पढ़ाई किए हुए हैं। कॉलेज की पढ़ाई करने वाले गिनती के ही लोग है। उसे भी लगता था कि वह बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी कर पायेगी या नहीं। 10वीं कक्षा पास करने के बाद कलेक्टर श्री पी दयानंद के घर आने और उनसे मिली प्रेरणा के विषय में बताती हुई ममता कहती है कि वह दिन सचमुच मेरी जिंदगी में एक नया मोड़ के समान था। कलेक्टर सर का चेहरा, उनकी बातें मुझे पढ़ाई के लिए हमेशा प्रेरित करती रही। ममता ने बताया कि उनके दादा-दादी, माता-पिता की जिंदगी संघर्षों के बीच बीती है। समाज में लड़कियां 5वीं, 8वीं पढ़ लेती थीं, वहीं उनकी उपलब्धि थी और इसके बाद शादी के बंधन में बंध जाती थी। ऐसे में उन्हें भी लगता था कि 10वीं के बाद पता नहीं कब उनका भी रिश्ता तय कर दिया जाए और पढ़ाई वहीं बंद हो जाए। ममता कहती है कि कलेक्टर के घर आकर उनसे मिलने से घर का पूरा माहौल बदला। उनके निर्देश पर हास्टल में जगह मिली। माता-पिता ने उन्हें आगे पढ़ाई पूरी करने में पूरा सहयोग दिया और नौकरी मिलते तक शादी भी नहीं की। समाज के अन्य लोगों को भी यह जानकार खुशी हुई कि कलेक्टर साहब उनके घर आए थे और उन्होंने भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने का काम किया। ममता ने बताया कि कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद वह एनआरएलएम से जुड़ी और सक्रिय महिला सदस्य के रूप में दिल्ली में कार्यक्रम में सम्मिलित भी हुई। उन्होंने बताया कि कलेक्टर के घर आने के बाद वह भी अधिकारी बनना चाहती थी, लेकिन शिक्षिका के रूप में नौकरी लगने के बाद अहसास हुआ कि यह फील्ड उनके लिए बहुत अच्छा है और इस नौकरी की बदौलत अपने समाज के बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित है।
शिक्षा और शिक्षक के भूमिका को बताया महत्वपूर्ण –
पहाड़ी कोरवा ममता कहती है कि मैं जो कुछ हूं अपनी शिक्षा और स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षा से लेकर कलेक्टर द्वारा शिक्षक के रूप में घर आकर दिए गए प्रेरणा से ही हूं। मैं पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी होती तो आज मेरा भविष्य जंगलों में गुम हो जाता। बकरी चरा रही होती। आर्थिक रूप से भी मजबूत नहीं होती। मेरे आने वाले बच्चों का भविष्य भी गरीबी से गुजरता। अब ऐसा नहीं है। हर महीने वेतन मिलती है और यह राशि मेरी जरूरतों को पूरा करने में मददगार बनती है। ममता ने बताया कि वेतन के पैसे से उन्होंने अपने स्कूल आने के लिए स्कूटी ली है और घर का कुछ सामान, आभूषण ली है तथा बचत भी कर रही है। उन्होंने समाज के बच्चों को स्कूल जाने वाले मन लगाकर पढ़ाई करने तथा शिक्षकों को भी बच्चों को पढ़ाई के प्रति प्रेरित करने की अपील की।