दीवाली उजागर हुई रंग और दीयों से,
आओ जरा घर-समाज को और सवांर लें ।
अपनों के कुछ एक घर सदा अमावस हैं,
बाटें प्यार पटाखे पकवान कुछ लिबास लें ।
आओ जरा घर-समाज को और सवांर लें ।।
पाठ्य प्रोत्साहन पेंसिल कॉपी रंग उपहार,
राशन पानी बिजली दें समुचित पर सत्कार।
श्रद्धा बीज सतत बुनते चलें हैं,
अबोध बच्चे अपन आओ एक-दो गोद लें।
बाटें प्यार पटाखे पकवान कुछ लिबास लें ।।
आओ जरा घर-समाज को और सवांर लें।।1।।
सामाजिक कुरितियों को सद्गति प्रवाह दें,
कर भला तो हो भला ऐसा संचार संज्ञान दें।
अंतस आकाँक्षा से व्यभिचार है बढ़े चलें,
वख्त बहुत निज को उनको कुछ आभार चलें।।
आओ जरा घर-समाज को और सवांर लें।।2।।
पर्यावरण प्रदूषण मितव्ययता का व्याख्यान दें,
दूध जातिगत नहीं फिर क्यों गौमाता अपमान करें।
सर्व धर्म समभाव सार्वभौमिकता का मिसाल दें,
आर्यभट्ट कलाम से अब तक विश्व गुरू बनते चलें।।
आओ जरा घर-समाज को और सवांर लें।।3।।
बाटें प्यार पटाखे पकवान कुछ लिबास लें ।।
आओ जरा घर-समाज को और सवांर लें।।
आओ जरा घर-समाज को और सवांर लें।
@ रचना:- वीरेन्द्र पटनायक, (सारंगढ़िया-भिलाई)
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