कूनो में अभी और चीतों की होगी मौत, सिर्फ 5-7 ही बचेंगे’,…दक्षिण अफ्रीकी विशेषज्ञ बोले- यह सामान्य घटना
नई दिल्ली. ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत मध्य प्रदेश के श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए नामिबियाई और दक्षिण अफ्रीकी चीतों को लेकर बुरी खबरें लगातार सामने आ रही हैं. अब तक शावकों, नर व मादा चीतों को मिलाकर कुल 9 की मौत हो चुकी है. इन घटनाओं के बाद ‘प्रोजेक्ट चीता’ की सफलता को लेकर संशय व्यक्त किया जा रहा है. लेकिन दक्षिण अफ्रीकी विशेषज्ञ इस तरह के रिहैबिलिटेशन प्रोजेक्ट के लिए चीतों की मौत का सामान्य घटना मान रहे हैं.
चीता प्रोजेक्ट से जुड़े दक्षिण अफ्रीकी विशेषज्ञों का कहना है कि कूनो नेशनल पार्क लाए गए 20 चीतों में से केवल 5-7 चीते ही जिंदा रह सकेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि भारत में हो रही चीतों की मौतें सामान्य हैं. विशेषज्ञों ने उदाहरण देते हुए समझाया कि दक्षिण अफ्रीका ने 1966 में चीता रिहैबिलिटेशन प्रोजेक्ट शुरू किया था. चीतों को दक्षिण अफ्रीका की आबोहवा को अपनाने में 26 साल लगे. इस दौरान 200 चीतों की मौत हुई.
विशेषज्ञों ने बताया कि अफ्रीकी चीतों के लिए भारत का मौसम सबसे बड़ी चुनौती है. उनके मुताबिक चीता प्रोजेक्ट को सबसे बड़ा झटका उस वक्त लगा जब तीन चीतों की मौत सेप्टीसीमिया से हुई. सेप्टीसीमिया एक ऐसी स्वास्थ्य परिस्थिति है जिसमें इम्यून सिस्टम काफी कमजोर हो जाता है, जिससे खून में बड़े स्तर पर खास तरह का कैमिकल बनता है. इस कैमिकल से शरीर में सूजन बढ़ने लगती है. आखिर में यह मल्टी ऑर्गन फैलियर का कारण बनता है. उन्होंने बताया, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि, चीते विदेशों में अप्रैल-मई में सर्दी का अंदाजा लगाते हुए अपनी चमड़ी मोटी कर लेते हैं. जबकि, भारत में इन दोनों महीनों में जबरदस्त गर्मी पड़ती है. इस वजह से उन्हें स्किन इंफेक्शन हो गया. विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में चीतों का ट्रीटमेंट किया गया है. इस ट्रीटमेंट को अगले साल मानसून आने से पहले तक जारी रखना होगा. इससे पैरासाइट कम होंगे और चीतों की समय पर इम्यूनिटी भी बढ़ जाएगी. विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि चीतों की चमड़ी मोटी करने की विशेषज्ञता पर भी नजर रखनी होगी. चीते समय के साथ इस परिवर्तन को ढाल लेंगे.