अन्नदान का महापर्व छेरछेरा आज
अन्न दान के इस पर्व को छेरछेरा के रूप मनाए जाने की पुरानी परंपरा है। गांव के लोगों में पर्व को लेकर चले रहा उत्साह सोमवार को थमेगा। गांव की महिलाएं पर्व को लेकर जहां घर-घर जाकर सुआ नृत्य, तो पुरुष वर्ग गलियों चौपालों में डंडा
नृत्य, पंथी नृत्य करने में जुट गए थे। यह दृश्य ग्रामीण अंचल में देखने को मिलता है। बच्चों की टोलियां घर-घर जाकर छेरछेरा मांगने निकलेगी।
छेरछेराके रूप में मिले धान को हर समूह में शामिल सदस्य एकत्र करते हैं। जिसे बेचकर मिलने वाली राशि का उपयोग सामूहिक रूप से एंज्वाय करने के लिए करते हैं। कई गांवों में पूजा की जाती है। इसके बाद एक स्थान पर एकत्र होकर खुशियां मनाते हैं।
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। प्रदेश में धान की पैदावार अन्य प्रांतों की अपेक्षा काफी अधिक होती है। किसान धान की फसल पकने के बाद खेतों से घर लाते हैं और उसकी मिसाई करने के बाद घर में सुरक्षित रखते हैं।
लगभग खेती से जुड़ा हर परिवार में अच्छी पैदावार होने की खुशी रहती है। इस खुशी को पूरे प्रांत में छेरछेरा पर्व के रूप में मनाते हुए उस दिन घर के दरवाजे पर पहंुचने वाले याचकों की टोलियों को धान दान में देते हैं।
परिवार में सदैव समृद्धि बने रहे इसी कामना के साथ हर किसान परिवार दान करता है।