अनोखी परंपरा! छत्तीसगढ़ में यहां रूककर राहगीर खाते हैं लाठी, सारी बीमारी होती है छू-मंतर
जांजगीर-चांपाः- जांजगीर-चांपा जिले के जिला मुख्यालय जांजगीर से 40 से 45 किलोमीटर दूर पंतोरा गांव है, जहां होली के पांचवें दिन लट्ठमार होली खेली जाती है. यहां रंग पंचमी के दिन राधा के गांव बरसाने की तर्ज पर लट्ठमार होली का आयोजन बरसों से चला आ रहा है. इसे स्थानीय भाषा मे डंगाही होली कहा जाता है.
पंतोरा गांव में डंगाही होली के दिन गांव की कुंवारी कन्याएं मंदिर में अभिमंत्रित बांस की छड़ियां लोगों पर बरसाती हैं. यहां के ग्रामीणों में आस्था है कि छड़ी खाने से बीमारीयां दूर होती हैं. इसलिए इस पर्व का पंतोरा में विशेष महत्व है. त्योहार के महत्व और आस्था का लोग विशेष सम्मान भी करते हैं.
छड़ी का है विशेष महत्व
बलौदा ब्लाक के पंतोरा गांव में विराजित मां भवानी मंदिर परिसर में रंग पंचमी के दिन हर साल पंतोरा के ग्रामीण जुटते हैं. इस सम्बंध में यहां के ग्रामीण लाल बहादुर सिंह ने लोकल 18 को बताया कि यहां लट्ठमार होली की बरसों पुरानी परंपरा चली आ रही है. जिसके लिए रंग पंचमी के एक दिन पूर्व शाम को ग्रामीण कोरबा जिले के मड़वारानी के जंगल से बांस की छड़ी लेकर आते हैं. इसमें उसी छड़ी का उपयोग किया जाता हैं, जो एक ही कुल्हाड़ी में कट जाए उसी छड़ी की पूजा की जाती है.
रंग पंचमी के दिन उस बांस की छड़ी की पूजा-अर्चना मां भवानी के सामने की जाती है. यह कामना की जाती है कि उनके गांव में कोई बीमारी ना फैले. गांव के भवानी मंदिर में माता की पूजा के बाद कुंवारी कन्याओं द्वारा माता को 5 बार बांस की छड़ी स्पर्श कराई जाती है. जिसके बाद मंदिर परिसर के देवी-देवताओं पर भी कुंवारी कन्याएं बांस की छड़ी बरसाती हैं.