November 25, 2024

इस मंदिर में महाभारत काल में महाबली भीम ने राक्षसी हिडिंबा से रचाई थी शादी, नवरात्रि पर होता है भव्य मेले का आयोजन

महासमुंद। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है। इस चैत्र नवरात्रि की शुरूआत 9 अप्रैल से हो रहा है जिसका समापन 17 अप्रैल को होगा। 9 अप्रैल को ही घट स्थापना होगी और मां दुर्गा की नौ दिवसीय पूजा शुरू होगी। विभिन्न मंदिरों में पूजा को लेकर तैयारी शुरू हो चुकी है। हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। वैसे तो साल में चार नवरात्रि तिथियां होती हैं, लेकिन इनमें से चैत्र और शारदीय नवरात्रि को प्रमुख माना जाता है। वहीं भारत में अनेकों मंदिर और ऐसे शहरों का नाता रामायण और महाभारत से जुड़े हुआ है। इन्ही में से एक मंदिर है छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में स्थित माता खल्लारी का मंदिर।

माता खल्लारी के इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि यहां पर महाबली भीम और राक्षसी हिडिंबा का विवाह संपन्न हुआ था। जिसके बाद यहां पर माता खल्लारी का मंदिर बनाया गया। ये मंदिर एक उंची पहाड़ी पर बना हुआ है। प्राचीन काल में इस स्थान को खलवाटिका के नाम से जाना जाता था। माता के दर्शन के लिए भक्तों को करीब 850 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है।

कन्या के रूप में हाट बाजार आती थी माता
कुछ स्थानीय लोगों के अनुसार, गांव में खल्लारी माता का निवास था। यहां माता कन्या का रूप धारण करके खल्लारी में लगने वाले हाट बाजार में आती थी। इसी दौरान मेले में आया एक बंजारा माता के रूप पर मोहित हो गया और उनका पीछे करते हुए पहाड़ी पर पहुंच गया। जिससे माता क्रोधित हो गई और उन्होंने बंजारे को श्राप देकर उसे पत्थर में परिवर्तित कर दिया और खुद भी वहां विराजमान हो गईं।
हिडिंब राक्षस के साथ भीम ने किया था युद्ध
बता दें कि माता खल्लारी के मंदिर के पास ही एक छोटी खल्लारी माता का मंदिर भी है और दोनों ही मंदिरों में नवरात्रि के दौरान भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि महाभारत काल के दौरान यहां पर एक हिडिंब नाम का राक्षस रहता था और उसकी एक बहन हिड़िंबा भी थी। वहीं जब महाबली भीम एक बार इस जगह पर विश्राम करने आए तो हिंडिबा उन्हें देखकर मोहित हो गई, लेकिन तभी हिडिंब राक्षस और भीम के साथ युद्ध हो गया। जिसमें राक्षस की मौत हो गई। इसके बाद माता कुंती के आदेश पर भीम ने राक्षसी हिंडिबा से शादी कर ली। इस घटना के बाद से इस जगह को भीमखोज के नाम से भी जाना जाने लगा।