November 24, 2024

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले किसानों का दिल्ली कूच, नतीजों पर कितना असर डालेगा?

दिल्‍ली एक बार फिर किले में तब्दील हो चुकी है. मंगलवार को हजारों की संख्या में किसान दिल्ली कूच करने वाले हैं. मुख्य रूप से हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश से आ रहे ये किसान ‘दिल्ली चलो’ मार्च में शामिल होंगे. यह मार्च 200 से ज्‍यादा किसान यूनियनों के बैनर तले बुलाया गया है. 2020 में संसद से तीन कृषि कानून के पास होने के बाद किसानों ने दिल्‍ली जाम कर दी थी. 16 महीने तक किसान संगठन दिल्ली की सीमाओं पर डटे रहे. केंद्र के कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद आंदोलन समाप्त हुआ था. अब किसान फिर दिल्‍ली आ रहे हैं क्योंकि केंद्र से बातचीत बेनतीजा रही है. वे न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (MSP) की गारंटी वाला कानून, पेंशन और कर्ज माफी, 2020-21 प्रदर्शनों में मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा जैसी मांगें लेकर दिल्‍ली घेरेंगे. लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले, दिल्ली में किसानों के आंदोलन ने सियासत को भी हवा दी है. किसान आंदोलन 2.0 न सिर्फ सत्ताधारी बीजेपी, बल्कि विपक्षी गठबंधन INDIA के लिए भी चुनौती पेश कर रहा है.

PM मोदी के ’24 में 400 पार’ के टारगेट को चैलेंज

पिछले साल दिसंबर में, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने वाली बीजेपी आत्‍मविश्‍वास से भरी हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के भीतर से आगामी चुनाव में बीजेपी की 370 से ज्यादा सीटें आने की भविष्यवाणी की है. सत्ताधारी NDA का आंकड़ा 400 सीटों के पार जाएगा, मोदी और बीजेपी के नेता बार-बार यह दोहरा रहे हैं. लेकिन किसान आंदोलन 2.0 ने बीजेपी को सिरदर्द दे दिया है. प्रदर्शनकारी किसान मुख्यतः: पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से आते हैं. हिंदी बेल्ट में पड़ने वाले इन तीन राज्यों में लोकसभा की कुल 103 सीटें हैं.

पंजाब में मुकाबला दिलचस्प है. INDIA धड़े में शामिल AAP ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर रखी है. 2019 आम चुनाव में, पंजाब में 9.73% वोट शेयर के साथ सिर्फ दो सीटें जीतने वाली बीजेपी INDIA में फूट का फायदा उठाना चाहेगी. किसान आंदोलन के चलते, हरियाणा में 2019 जैसा प्रदर्शन दोहराना बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकता है. तब बीजेपी ने राज्य की सभी 10 सीटें अपने नाम की थीं. हालांकि, इस बार किसान आंदोलन का हरियाणा पर खासा असर रहा है. बीजेपी यहां दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी के साथ मिलकर लड़ सकती है ताकि किसान आंदोलन के असर को कम किया जा सके.

उत्‍तर प्रदेश की भी किसान आंदोलनों में महती भागीदारी रही है. 80 सीटों वाले राज्य में बीजेपी ने 2014 में 72 सीटें और 2019 में 62 सीटें जीती थीं. RJD के साथ गठबंधन तय होने के बाद अब सीट बंटवारे को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है. चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देना और RLD को साथ मिलाना, बीजेपी की तरफ से किसान आंदोलन के काट की रूप में देखा जा रहा है.

किसान आंदोलन क्या है?

2020-21 के किसान आंदोलन की जो मांगें अधूरी रह गई थीं, उन्हें मनवाने को किसान फिर दिल्ली की तरफ बढ़ रहे हैं. किसान आंदोलन 2.0 में 200 से ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं. ‘दिल्ली चलो’ मार्च में आ रहे अधिकतर किसान यूपी, पंजाब और हरियाणा से हैं.

किसान आंदोलन के कारण?

किसानों तमाम डिमांड लेकर आए हैं. वह फसलों के न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (MSP) की कानूनी गारंटी चाहते हैं. स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू किया जाए, किसानों और खेतिहर मजदूरों को पेंशन मिले, पुलिस मुकदमे वापस लिए जाएं, लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय मिले, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 की वापसी हो, विश्‍व व्‍यापार संगठन से भारत नाता तोड़ लें… जैसी मांगें की जा रही हैं.