परवरिश: पैसा जोड़कर सही जगह इस्तेमाल करके बच्चे समझदार और ज़िम्मेदार बनते हैं, जो कि परवरिश की अहम भूमिका है
परवरिश: पैसा जोड़कर सही जगह इस्तेमाल करके बच्चे समझदार और ज़िम्मेदार बनते हैं, जो कि परवरिश की अहम भूमिका है
बचपन में पॉकेट मनी मिलने की उत्सुकता आज भी याद है। उस समय पच्चीस-पचास पैसे और एक रुपये पाकर भी ख़ुशी से झूम उठते थे। परंतु आज की पीढ़ी के सोचने और समझने का तरीक़ा बिल्कुल अलग है। उनकी ज़रूरतें अलग हैं और उन्हें पैसों को संजोने के बजाय ख़र्च करने की उत्सुकता अधिक होती है। बच्चे ज़िद करके जितने पैसे मांगते हैं अभिभावक उन्हें उतनी पॉकेट मनी दे देते हैं। इससे उनकी मांग बढ़ती जाती है और वे बेतरतीबी से ख़र्च भी करते हैं। पैसों का महत्व और उसका प्रबंधन सिखाना परवरिश का हिस्सा है। उन्हें कितनी, कैसे और कब पॉकेट मनी देनी है इसका ध्यान रखना अभिभावकों की ज़िम्मेदारी है। कब करें जेबख़र्च की शुरुआतसामान्य तौर पर अभिभावक पांच से सात साल की उम्र में बच्चों को जेबख़र्च देना शुरू करते हैं। ऐसे में शुरुआत में चार से छह हफ्ते तक उन्हें पॉकेटमनी दें और उसे जमा करने को कहें। इसी के साथ-साथ जमा हुए पैसों से उन्हें घर पर ही ख़रीदारी का अभ्यास कराएं। जब बच्चे पैसों का अर्थ जानने लगें, गिनती करना सीख जाएं, जब कुछ ख़रीदने के लिए पैसों की आवश्यकता महसूस हो और इनका महत्व जानने लगें, तो समझ लीजिए कि वे जेबख़र्च के लिए तैयार हैं।
ख़र्च की जमा राशि से ही ख़रीदना है। – घर में एक से अधिक बच्चे हैं तो तय दिन में सबको जेबख़र्चदें।- अगर उन्हें पैसों की ‘बहुत ज़रूरत’ है तो वे उधार ले सकतेहैं, जो कि उन्हें अगले महीने तक चुकाने भी होंगे।• बच्चों को जेबख़र्च देने के बाद उन्हें बताएं कि ज़रूरी ख़र्चों – की सूची और बजट कैसे बनाना है, कहां कैसे ख़र्च करना है। उदाहरण के तौर पर वे मिली राशि का 50 फ़ीसदी जमा करें और 50 फ़ीसदी ख़र्चों के लिए रखें।बच्चों द्वारा बचाए गए पैसों को उनके बैंक खाते में जमा कराएं। इससे उन्हें बैंक की सेवाओं की जानकारी मिलेगी और पैसा भी सुरक्षित रहेगा।- इस बात का ध्यान रखना है कि अभिभावकों को बच्चों के साथ प्यार से पेश आना है, न कि सख़्ती से।खेल-खेल में सिखाएं वित्त प्रबंधन जब बच्चे रुपयों के मायने समझने लगें तो उनकी जानकारी और समझदारी बढ़ाने पर काम करें। बच्चों के साथ सामान ख़रीदने और बेचने का खेल खेलें। इसे उदाहरण से समझें खेल-खेल में बच्चों को कहें कि वे कोई सामान बेचें । अभिभावक उनकी दुकान पर जाकर सामान ख़रीदें और उसके बदले में पैसे दें । उनको मोल-भाव करना सिखाएं। फिर उन पैसों को जमा करके वे कैसे और कहां उपयोग कर सकते हैं, इसकी जानकारी दें। जब बच्चों में इसकी समझ विकसित हो जाए तो इस खेल को असल जीवन में प्रयोग करें।
छोटी-छोटी वस्तुएं ख़ुद के जमा पैसों से ख़रीदने के लिए कहें। इससे वे पैसों को किफ़ायत से ख़र्च करना और वहन करना सीखेंगे।यदि बच्चे कोई वीडियो गेम या मोबाइल ख़रीदने की ज़िद करते हैं तो आप उन्हें ख़ुद के पैसे जमा करके ख़रीदने के लिए कहें।पॉकेट मनी देना भी ज़रूरी हैकुछ अभिभावक बच्चों को जेबख़र्च देना ज़रूरी नहीं समझते। परंतु बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए यह ज़रूरी है।इससे बच्चे चाह और ज़रूरत में फ़र्क समझेंगे। सीमित पैसे होने के कारण वे वही ख़रीदेंगे जिसकी उन्हें आवश्यकता है। पैसों की अहमियत समझेंगे। सही और ग़लत जगह ख़र्च करने का फ़र्क जान सकेंगे।वित्त प्रबंधन सीख सकते हैं, जैसे सीमित पैसे होने के कारण वे ख़र्चों का बजट बनाएंगे, कैसे बचाना है और कहां ख़र्च करना है इसकी योजना बनाना सीखेंगे। इच्छाओं को रोककर ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बचत करने और इंतज़ार करने की सीख भी बच्चों को मिलेगी।