November 18, 2024

बाबा साहब सेवा संस्था ने बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम जी की 17 व पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि कर किया याद

कोंडागांव अंबेडकर चौक कोर्ट के सामने बाबा साहब सेवा संस्था कार्यालय में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी बहुजन समाज में जनमें महापुरुष मान्यवर बहुजन नायक कांशीराम जी की 17 व पुण्यतिथि व श्रद्धांजलि अर्पित की गई जिसमें संस्था के संरक्षक तिलक पांडे पंचु सागर पी पी गोडांने पंनकु नेताम मुकेश मारकंडे रमेश पोयम मंगउ देवांगन वीरेंद्र नेताम संदीप कोर्राम सिद्धार्थ महाजन संदीप वासनिकर बस संस्था के पदाधिकारी उपस्थित रहे। कांशीराम की जीवनी दलित नेता कांशीराम का जीवन परिचय एवं जीवन संघर्ष | कांशीरामजन्म – 15 मार्च 1934जन्म स्थान – रूपनगर (जिला -पंजाब )पिता का नाम – हरी सिंहमाता का नाम – श्रीमती बिशन कौरशिक्षा – सरकारी कॉलेज विश्वविद्यालय , सरकारी कॉलेज रोपर मेंपरिवार के सदस्य के नाम – स्वर्ण कौर, दलबीर सिंह, कुलवंत कौर, गुरचरण कौर, हरबंस सिंहराजनितिक पार्टी – बहुजन समाज पार्टीमृत्यु दिनांक – 9 अक्टूबर 2006 (नई दिल्ली)”कांशी राम – भारत के ऐतिहासिक पटल के एक ऐसे समाज सुधारक जिन्होंने अतीत की वर्णव्यवस्था से उद्वेलित होकर वर्तमान भारत में स्वयं को दलितों के हितचिंतक के रूप में प्रस्तुत किया|
भारत राष्ट्र में ब्रिटिश शासन से मिली आजादी के बाद व पूर्व दोनों से ही समाज के अनगिनत समाज सुधारकों ने भारत के दलितों के उत्थान का बीड़ा उठाया| उन्ही में से एक महत्वपूर्ण नाम है माननीय कांशीराम जी का| जन्म एवं परिवार दलित नेता कांशीराम का जीवन परिचय एवं जीवन संघर्ष |कांशी राम जी का जन्म पंजाब के ‘रोपुर’ जिले के ‘ख्वासपुर’ गांव में 15 मार्च 1934 को हुआ था| उनका परिवार एक दलित परिवार था, पिता का नाम “हरी सिंह” और माँ का नाम “बिसन कौर” था, हालाँकि जब वे पैदा हुए थे उस समय के समाज में दलितों को घृणा के दृष्टि से देखा जाता था| उनके पिता अशिक्षित थे परन्तु अपने बच्चों को पूर्ण रूप से शिक्षित करना चाहते थे| उनके दो भाई और चार बहने थीं| वे अपने भाई-बहनो में सबसे बड़े और सबसे ज्यादा शिक्षित थे| उन्होंने बैचलर ऑफ़ साइंस (बी एस सी) की उपाधि अर्जित की थी, इसके बाद सन 1958 में कांशी राम “डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन (डी. आर. डी. यो.)” विभाग में “सहायक वैज्ञानिक” के पद पर नियुक्त हुए| दलितों के नेतादलित नेता कांशीराम का जीवन परिचय एवं जीवन संघर्ष |कांशी राम जी समाज में दलितों के प्रति किये गए अत्याचारों से काफी आहत रहते थे, इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए जब सन 1965 में “बी. आर. अम्बेडकर ” के जन्मदिन पर सार्वजनिक अवकास को रद्द करने के कारण का विरोध किया| कांशी राम, बी. आर. अम्बेडकर के जीवन से काफी प्रभावित थे, इसी कारण उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने अंतर्मन की आवाज़ पर अमल करते हुए पीड़ित दलित समाज के उत्थान का बेडा उठाया| उन्होंने भारत के जातिवाद के बारे में रिसर्च की और उसके बाद अपना पूरा जीवन सिर्फ दलितों की सेवा में बिताया|
उन्होंने दलित हितों के रक्षा करने के लिए कदम आगे बढ़ाने शुरू किये और इसी कड़ी में एक सहकारी के साथ मिलजुलकर अनुसूचित जाती, पिछड़ी जाती और अलप जाती के कल्याण के लिए एक संस्था की स्थापना की जिसका नाम “बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लोयी फेडरेशन” रखा, इसका पहला कार्यालय डिल में 1976 में खुला| उन्होंने “बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर” की भी स्थापना की|कांशीराम का राजनीति में प्रवेशदलित नेता कांशीराम का जीवन परिचय एवं जीवन संघर्ष | माननीय कांशी राम जी ने दलितों के हितों के लिए बहुत सारे आंदोलन और पदयात्रा की| 1984 में “बामसेफ” के नाम से समनांतर “दलित शोसित समाज संघर्ष समिति” का गठन किया| उन्होंने भारत सरकार और उसकी नीतियों का विरोध करने के लिए 1984 में एक राजनैतिक पार्टी कर गठन किया जिसका नाम “बहुजन समाज पार्टी” है जिसको आज वर्तमान में बहन “मायावती जी” द्वारा संचालित किया जा रहा है| कांशीराम ने निम्नलिखित पत्र-पत्रिकाएं शुरू की—
प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं अनटचेबल इंडिया (अंग्रेजी) आप्रेस्ड इंडियन (अंग्रेजी)बामसेफ बुलेटिन (अंग्रेजी) बहुजन संगठनक (हिन्दी) बहुजन नायक (मराठी एवं बंग्ला)श्रमिक साहित्य शोषित साहित्यदलित आर्थिक उत्थानइकोनोमिक अपसर्ज (अंग्रेजी) बहुजन टाइम्स दैनिकबहुजन एकताकांशीराम जी पहले ऐसे व्यक्ति थे जिसने शोषित समाज की निष्क्रिय रही राजनितिक चेतना को जागृत किया था. बाबा साहब ने संविधान के माध्यम से शोषित समाज के लिए विकास के लिए बंद दरवाजे खोल दिए थे, लेकिन इस विकास रूपी दरवाजे के पार पहुचाने का कार्य मान्यवर ‘कांशीराम’ जी ने किया था. बाबा साहब ने दलितों को मनोबल प्राप्त करने का आह्वान किया, कांशीराम जी ने समाज को ‘मनोबल’ प्राप्त करने के लिए मजबूर किया. कांशीराम जी उन महान पुरषों में से है जिन्होंने व्यक्तिगत ‘स्वार्थ’ की जगह समाज के लिए कार्य किया, अपनी माँ को लिखी चिठ्ठी में ‘मान्यवर कांशीराम’ जी ने ‘शोषित समाज’ को ही अपना परिवार बताया. वर्तमान में समाज को ‘कांशीराम’ जी जैसे महापुरुषों की अत्यंत आवश्यकता है.कांशीराम का अंतिम समय दलितों के हितों के चिंतक के रूप में ख्याति पाने वाले इस महान समाज सुधारक को 1995 में दिल का दौरा पड़ा और 2003 में ब्रेन हैमरेज हुआ, उसके बाद जीवन के संघर्ष की परिभाषा सिखाने वाले इस महान व्यक्तित्व ने आखिर 9 अक्टूबर 2006 को इस दुनिया से विदा ली |